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Amravati Ganesha museum: चिखलदरा का गणेश म्यूजियम! यहां रखे हैं बप्पा के 6000 से ज्यादा रूप, हर मूर्ति देती है अनोखा संदेश

गणपति बप्पा हर भक्त के दिल में बसे हैं. लेकिन चिखलदरा का यह संग्रहालय साबित करता है कि बप्पा के हर रूप में एक संदेश छिपा है- कभी ज्ञान का, कभी खेल का और कभी जीवन के संघर्ष का. यही वजह है कि दूर-दराज से आने वाले भक्त यहां दर्शन कर भावुक हो उठते हैं और कहते हैं- “गणपति बप्पा मोरया!”

अमरावती गणेश म्यूजियम अमरावती गणेश म्यूजियम

महाराष्ट्र के विदर्भ की गोद में बसा चिखलदरा… जिसे लोग इकलौते हिल स्टेशन के तौर पर जानते हैं. यहां की ठंडी हवाएं और प्राकृतिक खूबसूरती हर पर्यटक को अपनी ओर खींच लेती हैं. लेकिन इन दिनों चर्चा सिर्फ प्राकृतिक नजारों की नहीं, बल्कि एक ऐसे संग्रहालय की हो रही है जहां गणपति बप्पा के 6000 से ज्यादा रूप एक ही छत के नीचे दिखाई देते हैं.

यह संग्रहालय महज एक आर्ट गैलरी नहीं, बल्कि भक्ति और कला का अनोखा संगम है. इसे बनाने का श्रेय जाता है अकोला के व्यापारी और गणेश भक्त प्रदीप उर्फ ‘गोटू सेठ’ नंद को. उनकी लगन और श्रद्धा ने इस अद्वितीय संग्रहालय को जन्म दिया है.

बप्पा के हर रूप की झलक

संग्रहालय में कदम रखते ही आंखें ठहर जाती हैं. कहीं बप्पा क्रिकेट, बैडमिंटन और बुद्धिबळ खेलते नजर आते हैं, तो कहीं मोटरसाइकिल चलाते या बैलगाड़ी पर सवार दिखते हैं.

कुछ मूर्तियां डॉक्टर, वकील या लैपटॉप पर काम करते बप्पा को दर्शाती हैं. कहीं पियानो बजाते और पतंग उड़ाते बप्पा हैं तो कहीं महाजनी बही-खाता लिखते.

इतना ही नहीं, गेहूं के दाने पर उकेरी गई प्रतिमा और पेंसिल से बनी तीन फीट ऊंची प्रतिमा भी यहां दर्शकों को अचंभित कर देती है.

मूर्तियों का अनोखा संगम

हर मूर्ति अपनी शैली और शिल्प में अनोखी है. संगमरमर की मूर्तियां जयपुर और किशनगढ़ से मंगाई गईं, पीले पत्थर की मूर्तियां जैसलमेर और उदयपुर से, धातु की मूर्तियां लेह, श्रीनगर और पुणे से, जबकि फायबर प्रतिमाएं विदर्भ के अलग-अलग शहरों से लाई गईं. नेपाल, तिब्बत, बाली और इंडोनेशिया से आई मूर्तियां भी यहां संग्रह की शोभा बढ़ाती हैं.

परिवार की भक्ति और योगदान

प्रदीप नंद की पत्नी ज्योति नंद ने ही सुझाव दिया था कि घर में रखी हजारों प्रतिमाओं को भक्तों के लिए खोला जाना चाहिए. आज भी वे हर मूर्ति की सफाई और देखभाल खुद करती हैं. उनकी बेटी दीपाली नंद संग्रहालय की प्रमुख के तौर पर इसे संभाल रही हैं.

गणपति प्रतिमाओं के साथ-साथ संग्रहालय में करीब 1600 किताबों का दुर्लभ संग्रह भी है. इनमें मराठी, हिंदी, तमिल, तेलुगू, उर्दू और गुजराती समेत कई भाषाओं की किताबें शामिल हैं. प्रबंधन की ओर से यह भी घोषणा की गई है कि जो भी शोधार्थी यहां पीएचडी करना चाहते हैं, उनके लिए रहने-खाने की पूरी व्यवस्था की जाएगी.

भक्तों के लिए खुला निमंत्रण

प्रदीप नंद का कहना है, “यदि किसी भक्त के पास गणपति बप्पा की अनोखी प्रतिमा है, तो वे इसे संग्रहालय को दान कर सकते हैं. जरूरत पड़ने पर उसका मूल्य भी दिया जाएगा.”

गणपति बप्पा हर भक्त के दिल में बसे हैं. लेकिन चिखलदरा का यह संग्रहालय साबित करता है कि बप्पा के हर रूप में एक संदेश छिपा है- कभी ज्ञान का, कभी खेल का और कभी जीवन के संघर्ष का. यही वजह है कि दूर-दराज से आने वाले भक्त यहां दर्शन कर भावुक हो उठते हैं और कहते हैं- “गणपति बप्पा मोरया!”

(धनञ्जय साबले की रिपोर्ट)