
प्रभु श्री राम भले ही अयोध्या में जन्मे हो, लेकिन उनकी लीलाओं का केंद्र बिंदु चित्रकूट ही रहा है. भगवान राम ने उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जनपद के पहाड़ों, जंगलों और नदियों के किनारे अपने 14 वर्षों के वनवास में से लगभग साढ़े 11 वर्ष व्यतीत किए थे. राम युवराज के तौर पर चित्रकूट आए और चित्रकूट में अपने मानवीय मूल्यों और आचरण से वे न सिर्फ लोगों के लिए पूजनीय हो गए, बल्कि भगवान का भी दर्जा प्राप्त कर लिया.
चित्रकूट से हुई राम राज्य की शुरुआत-
राम राज्य की शुरुआत भी चित्रकूट से ही हुई थी. अपनी मानवीय लीला के क्रम में जब प्रभु श्री राम और माता जानकी चित्रकूट में प्रवाहमान मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित स्फटिक शिला में बैठकर फूलों के आभूषण बना अपनी प्राण प्रिया जानकी का श्रंगार कर रहे थे. तब देवताओं के राजा इंद्र के पुत्र जयंत को यह भ्रम हो गया कि राम ब्रह्म हैं या कोई साधारण मानव. उसने प्रभु श्री राम के बल की परीक्षा लेने के लिए माता सीता के चरणों में चोंच से प्रहार किया. तब प्रभु श्री राम ने कौवे के वेश आये इंद्र के पुत्र जयंत को दंडित कर यह स्पष्ट संदेश दिया कि आतताई चाहे वह राजघराने से ही क्यों न संबंध रखता हो, अगर उसने धृष्टता की है, उत्पात किया है तो उसे उसके कर्मों का दंड अवश्य दिया जाना चाहिए.
रामलीला के जरिए जन-जन से पहुंचाया जा रहा संदेश-
चित्रकूट में इन दिनों भगवान राम के इन्हीं गुणों का संदेश जन-जन तक पहुंचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय रामलीला उत्सव का आयोजन किया जा रहा है. इस उत्सव में न सिर्फ देश की नामचीन रामलीला मंडली अपनी कला का प्रदर्शन कर रही है बल्कि इंडोनेशिया, ताइवान और मलेशिया जैसे देशों की भी सुविख्यात रामलीला मंडलियाँ राम की मानवीय लीलाओं का मनोहारी प्रदर्शन कर दर्शकों का मन मोह ले रही हैं. राम की नगरी चित्रकूट इन दिनों राम की लीलाओं के मंचन से गुंजायमान है. लोग राम के चरित्र को आत्मसात करने के लिए भारी संख्या में इन लीलाओं को देखने उमड़ रहे हैं.
चित्रकूट के लोगों का मानना है कि दिशाहीन हो रही युवा पीढ़ी को रामलीला ही सत मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने का सबसे सटीक जरिया हो सकता है. विदेश से अपनी कला का प्रदर्शन करने चित्रकूट आए कलाकार भी राम के तप की ऊर्जा से ओत प्रोत चित्रकूट की धरती पर अपनी कला का प्रदर्शन कर भगवान राम से नाता जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं.
(संतोष बंसल की रिपोर्ट)
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