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मार्गशीर्ष महीने में जप, तप और ध्यान से बन जाते हैं हर बिगड़े काम, यहां समझिए ध्यान का विज्ञान

श्री कृष्ण का मनभावन महीना है मार्गशीष ''महीनों में मैं मार्गशीर्ष हूँ'' कान्हा के ये शब्द ये बताने के लिए काफी हैं कि मार्गशीर्ष का महीना कृष्ण भक्तों, श्रीहरि के साधकों के लिए कितना महत्वपूर्ण है. ध्यान एकाग्र मन की वो अवस्था है जो आत्मा का मिलन परमात्मा से करा सकती है

श्री कृष्ण का मनभावन महीना है मार्गशीष श्री कृष्ण का मनभावन महीना है मार्गशीष
हाइलाइट्स
  • आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है ध्यान

  • मार्गशीर्ष में जरूरी है ध्यान

मार्गशीर्ष का महीना कृष्ण भक्तों, श्रीहरि के साधकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. कहते हैं इस महीने में जप, तप और ध्यान से हर बिगड़े काम बन जाते हैं. मार्गशीर्ष महीने में श्रीकृष्ण का ध्यान और उपासना का फल अमोघ है. ध्यान में वो शक्ति है जो हमें संसार के सभी कार्य करते हुए, परमात्मा तक पहुंचा देता है. वास्तव में ध्यान, हमें स्वयं को देखने, स्वयं को जांचने और स्वयं को परखने की प्रक्रिया है.

क्या है ध्यान
मन को किसी बिंदु,व्यक्ति या किसी वस्तु पर एकाग्र करना ध्यान है. एकाग्रता में लीन हो जाना ध्यान है. ईश्वर की उपासना का सर्वोच्च तरीका ध्यान ही माना जाता है. पूजा उपासना के बाद जिस पद्धति से ईश्वर की उपलब्धि हो सकती है वो ध्यान है. केवल आंखें बंद करना ध्यान नहीं है, चक्रों पर ऊर्जा को संतुलित करना भी आवश्यक है. ध्यान एक प्रक्रिया है, जो कई चरणों के बाद हो पाता है. इन कई चरणों में पहले चक्रों को ठीक किया जाता है. ध्यान की सिद्धि के बाद व्यक्ति अनंत सत्ता का अनुभव कर पाता है इसे समाधि कहा जाता है. तमाम गुरुओं और आचार्यों ने ध्यान की अलग अलग विधियां बताई हैं लेकिन सबके उद्देश्य एक ही हैं - ईश्वर की अनुभूति.

ध्यान के पीछे छिपा विज्ञान

दुनिया में सबसे सरल और प्रचलित ध्यान की विधि ओशो ने बताई है. इसे ओशो ने "सक्रिय ध्यान" कहा है, जो पांच चरणों में होता है. इस ध्यान को समूह में या अकेले करना होता है लेकिन ये समूह में ज्यादा प्रभावशाली होता है. ओशो ने ध्यान की अन्य विधियों के बारे में भी बताया है. आरम्भ से लेकर आगे बढ़ने तक कई सीढ़ियां बताई गई हैं. ओशो के ध्यान में, रंग,सुगंध और नृत्य-संगीत पर भी विशेष जोर दिया गया है. इनके ध्यान और साधना में चक्रों को कमल पुष्प के समान बताया गया है.

भगवान बुद्ध की ध्यान पद्धति 

जीवन में ध्यान साधना का सर्वोपरि स्थान है. आध्यात्मिक उपलब्धि तो बिना ध्यान के संभव ही नहीं है. ध्यान का विज्ञान बहुत ही व्यापक है. बुद्ध ने अष्टांग योग के माध्यम से ध्यान का मार्ग बताया है. बुद्ध के ध्यान पद्धति में चक्र, चक्के की तरह होते हैं. आचरण, व्यवहार और जीवन दर्शन के माध्यम से ईश्वर की उपलब्धि के लिए कार्य किया जाता है. बुद्ध की ध्यान पद्धति अब बहुत सारी पद्धतियों में घुल मिल गई है. ध्यान करने को लेकर कई मत और कई प्रक्रिया बताई गई हैं पर इन सबमें सबसे ज्यादा जोर दिया गया है एकाग्र मन का. ध्यान कर पाना तभी संभव है, जब मन पूर्ण रूप से एकाग्र हो और आपका उस परमेश्वर में विश्वास भी अटल हो क्योंकि बिना ईश्वर की कृपा के इस दुनिया में कुछ भी संभव नहीं.

ध्यान ही विज्ञान है

ध्यान का विज्ञान आज का नहीं बल्कि पौराणिक है. दरअसल जो ध्यान है वही विज्ञान है. ध्यान का सम्बन्ध आत्मानुसंधान से है. परमहंस योगनंद ने भी ध्यान के विज्ञान को बखूबी समझाया है. परमहंस योगानंद ने ध्यान की जिस विधि का दुनिया भर में प्रचार प्रसार किया वो है - क्रिया योग. मूल रूप से क्रिया योग पद्धति का आविष्कार एक महान गुरु "बाबा जी महाराज" ने किया था. इस पद्धति में भी कई चरणों के बाद ही ध्यान तक पंहुचने का अवसर मिलता है. क्रिया योग पद्धति तमाम ध्यान पद्धतियों का अनूठा संयोग है. ध्यान में आप तभी सफल होंगे जब किसी भी भाव, कल्पना और विचारों का क्षण मात्र भी प्रभाव नहीं पड़े. मन और मस्तिष्क का मौन हो जाना ही ध्यान का प्राथमिक स्वरूप है. ध्यान में इंद्रियां मन के साथ, मन बुद्धि के साथ और बुद्धि अपने स्वरूप आत्मा में लीन होने लगती है.

ध्यान की सावधानियां
- बिना किसी आधार और उद्देश्य के ध्यान ना करें.
- जिस व्यक्ति से आपको ध्यान सीखना है पहले उसकी उपलब्धियां जान लें.
- ध्यान सीखने के पूर्व उस व्यक्ति का जीवन और सामाजिक दर्शन जानने का प्रयास करें.
- केवल आकर्षण के लिए ध्यान की ओर ना जाएं.
- एक रास्ते पर ही चलें बार-बार तरीकों में बदलाव ना करें. 
- याद रखिए केवल आँख बंद करना ध्यान नहीं होता.