
देशभर में गणपति उत्सव की तैयारियां पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ चल रही हैं. इस बार का उत्सव खास है क्योंकि महाराष्ट्र और हैदराबाद में इको-फ्रेंडली गणपति मूर्तियों के जरिए पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया जा रहा है. यह पहल न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी है, बल्कि समाज को प्रकृति के प्रति जागरूक करने का भी एक सशक्त प्रयास है.
बीज गणेश प्रतिमाओं का अनावरण
हैदराबाद में एक प्रेरणादायक पहल देखने को मिली. स्वर्ण गिरि मंदिर में गणेश चतुर्थी से पहले बीज गणेश प्रतिमाओं का अनावरण किया गया. यह पहल ग्रीन इंडिया चैलेंज के अंतर्गत पूर्व राज्यसभा सांसद जोगिनपल्ली संतोष कुमार के नेतृत्व में हुई. इन विशेष मूर्तियों को प्राकृतिक मिट्टी और नारियल पाउडर से तैयार किया गया है, जिनमें नीम और इमली जैसे देशी पौधों के बीज शामिल किए गए हैं.
जब इन मूर्तियों का विसर्जन मिट्टी में किया जाएगा, तो उनसे पौधे अंकुरित होंगे और आगे चलकर पेड़ बनेंगे. यह अनूठा प्रयास त्यौहार को प्रकृति से जोड़ता है और उसे और भी अर्थपूर्ण बना देता है. इस कार्यक्रम में तेलुगु अभिनेता और निर्माता नारा रोहित भी शामिल हुए. इस साल ग्रीन इंडिया चैलेंज की योजना है कि ऐसी 5,00,000 प्रतिमाएं बांटी जाएं, ताकि अधिक से अधिक लोग इस आंदोलन से जुड़ सकें.
6000 इको-फ्रेंडली मूर्तियों का निर्माण
महाराष्ट्र के अकोला जिले में इस वर्ष एक अनोखा आयोजन देखने को मिला. यहां 6000 इको-फ्रेंडली गणपति मूर्तियां बनाई गईं, जो पूरी तरह प्राकृतिक मिट्टी से निर्मित थीं. इस पहल में लगभग 8,000 से 10,000 स्कूली बच्चों ने सक्रिय रूप से भाग लिया. आयोजन स्थल पर बच्चों का उत्साह और भक्ति भाव देखने लायक था. छोटे-छोटे हाथों से बनाई गई मूर्तियां श्रद्धा और कला का सुंदर मेल प्रस्तुत कर रही थीं. आयोजकों के अनुसार, इस प्रयास का उद्देश्य बच्चों को पर्यावरण संरक्षण का महत्व समझाना और उन्हें उत्सव को अधिक जिम्मेदारी से मनाने की प्रेरणा देना था. इस आयोजन की भव्यता और अनोखेपन ने इसे लंदन बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में स्थान दिलाया, जो अपने आप में गर्व का विषय है.
पर्यावरण संरक्षण का संदेश
महाराष्ट्र और हैदराबाद में हुई इन पहलों ने यह साबित कर दिया कि परंपरा और पर्यावरण संरक्षण का संतुलन पूरी तरह संभव है. मिट्टी और बीज से बनी गणपति मूर्तियां न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाती हैं, बल्कि प्रकृति की रक्षा का गहरा संदेश भी देती हैं. आयोजकों और प्रतिभागियों का मानना है कि ऐसे प्रयास उत्सवों को और अधिक सार्थक बनाते हैं और हमें यह याद दिलाते हैं कि धरती और पर्यावरण की रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है.
इस प्रकार, गणपति उत्सव इस बार केवल भक्ति और आनंद का प्रतीक ही नहीं, बल्कि पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने का माध्यम भी बन गया है. यदि ऐसे प्रयास लगातार किए जाएं, तो आने वाले वर्षों में यह उत्सव और भी सकारात्मक बदलाव का कारण बन सकता है.
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