
हैदराबाद की गर्मी, उमस और सांस फूलने की तकलीफ से जूझते लाखों लोगों के लिए जून का महीना एक उम्मीद की किरण बनकर आता है. वजह है फिश प्रसादम. इस साल भी ये खास प्रसादम 8 जून सुबह 10 बजे से 9 जून सुबह 10 बजे तक नामपल्ली के एक्जीबिशन ग्राउंड में दिया जाएगा.
हर साल की तरह इस बार भी बथिनी गौड़ परिवार इसे निःशुल्क बांटेगा. यह परंपरा दशकों से चली आ रही है और इस प्रसाद का इंतजार अस्थमा और सांस संबंधी अन्य रोगों से पीड़ित मरीज करते हैं.
क्या है फिश प्रसादम?
इस प्रसादम की प्रक्रिया थोड़ी अनोखी जरूर है, लेकिन हैदराबाद और आसपास के इलाकों में यह एक परंपरा, एक आस्था और एक भरोसे का रूप ले चुकी है. बथिनी परिवार एक खास हर्बल पेस्ट को उंगली जितनी छोटी जिंदा मछली (फिंगरलिंग) के मुंह में भरते हैं. फिर मरीज उस मछली को निगलता है, जो धीरे-धीरे गले और फेफड़ों में जाकर राहत पहुंचाने का दावा करती है.
मृगशिरा कार्ति के दिन दी जाती है मछली
यह सब होता है मृगशिरा कार्ति के दिन. मान्यता है कि इस दिन ग्रह-नक्षत्र ऐसे होते हैं कि दवा का असर अधिक गहराई तक होता है. खास बात है कि आंध्र-तेलंगाना सरकार भी इसे सपोर्ट करती आई हैं. ट्रैफिक कंट्रोल से लेकर मेडिकल टीम, टेंट, पानी और प्राथमिक उपचार के स्टॉल तक लगाए जाते हैं और प्रसाद के लिए करीब डेढ़ लाख मरल प्रजाति की मछलियों का इंतजाम किया जाता है.
150 सालों से चली आ रही यह प्रथा
बथिनी गौड़ परिवार का दावा है कि वह इस परंपरा को पिछले 150 सालों से निभा रहे हैं और अब तक लाखों मरीज इससे ठीक हो चुके हैं. दिलचस्प बात यह है कि ये सेवा बिल्कुल मुफ्त होती है. न कोई फीस, न कोई रजिस्ट्रेशन चार्ज. उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली और बंगाल तक से लोग यहां आते हैं. कई लोग तो सालों से हर जून में इसे लेने पहुंचते हैं. बच्चों से लेकर बूढ़े तक प्रसाद के लिए लाइन में लगते हैं.
इस प्रसादम को लेने वाले मरीजों का कहना है कि उन्हें इससे वाकई फायदा हुआ है, और उन्होंने इनहेलर व दवाइयां छोड़ दी हैं. दावा किया जाता है कि लगातार तीन साल ये प्रसाद खाने से अस्थमा की बीमारी ठीक हो जाती है. हालांकि साइंटिस्ट और डॉक्टर इसे बेवकूफी बताकर विरोध कर चुके हैं. लेकिन लोगों के विश्वास के आगे सब बेकार जान पड़ता है.