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ईसाई धर्म में संत बनना आसान नहीं है, जानिए सर्वेंट ऑफ गॉड बनने से लेकर चमत्कार करने की पूरी प्रक्रिया

इसाई धर्म के संत बनने की प्रक्रिया काफी लंबी और पेचिदा है. पहली प्रक्रिया में मरने के बाद कम से कम पांच साल का लंबा इंतजार करना पड़ता है ,लेकिन कभी कभी ये इंतजार लंबा भी होता है, जो एक तरह का अपवाद है.

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
हाइलाइट्स
  • ईसाई धर्म का संत बनने की प्रक्रिया होती है बेहद ही जटिल

  • पूरी करनी पड़ती है पांच मुश्किल शर्तें

ईसाई धर्म अपनाने वाले हिंदू देवसहायम पिल्लई को इसाई धर्म के संत की उपाधी दी गई है. संत का नाम सुनते ही एक नाम हमारे जहन में आता है और वो है संत कबीर दास का. इसाई धर्म के संत का जिक्र आते ही मदर टेरेसा और एना मुत्तथूपडथू का नाम भी याद आने लगता है, साथ में ये भी सवाल जहन में आता है कि इसाई धर्म के संत आखिर बनते कैसे हैं. वैसे संत को लेकर धारणा ये है कि मरने के बाद सेंट स्वर्ग में चले जाते हैं, और भगवान का काम वहां से करते हैं.

5 साल का लंबा इंतजार

किसी को संत बनाने की प्रक्रिया आमतौर पर उनकी मृत्यु के कम से कम पांच साल बाद तक शुरू नहीं हो सकती है. ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद की भावनाओं को शांत करने के लिए इन पांच सालों का समय देना जरूरी होता है.  ये भी माना जाता है कि इसी दौरान संत बनाने के विचार पर निष्पक्ष तौर पर मूल्यांकन  भी हो जाता है. कुछ लोगों को कैथोलिक संत के पद पर पहुंचने से पहले लंबा इंतजार करना पड़ता है. संत बेडे ,(Saint Bede the theologian),की मृत्यु 735 में हुई थी, लेकिन उन्हें संत घोषित होने के लिए 1,164 साल इंतजार करना पड़ा था. 

पुजित होने की मंजूरी 

पांच साल पूरे होने के बाद जहां पर  व्यक्ति की मृत्यु होती है, वहां पर एक जांच की जाती है, जिसे बिशप कहा जाता है. बिशप में  मृत व्यक्ति के जीवन के बारे में जानकारी इकठ्ठा की जाती है.  आस पास के लोगों से सुबूत लिया जाता है कि जिन्होंने उसे जीवित देखा . उसके काम को देखा. अगर बिशप में लगता है कि मृत व्यक्ति के काम ऐसे हैं कि सेंट की पदवी उन्हें मिलनी ही चाहिए, तभी वो नाम रेकमेंड किया जाएगा. वैटिकन कैथलिक ईसाई धर्म की सबसे महत्वपूर्ण जगह है. पोप (ईसाईयों के धर्मगुरु) यहीं रहते हैं. जहां रेकमेंडेशन भेजा जाता है उस जगह का नाम है कांग्रिगेशन फॉर द कॉजेज़ ऑफ़ सेंट्स. लेकिन इसमें एक शर्त है. जिसके लिए भी सेंट की पदवी की अर्जी लगाई जाती है, उसकी मौत को कम से कम पांच साल पूरे हो चुके हों.

सर्वेंट ऑफ गॉड 

बिशप वाली प्रक्रिया पूरी कर लेने के बाद अगर एप्लीकेशन एक्सेप्ट हो जाती है तो कांग्रिगेशन जांच पड़ताल करता है, इसमें देखा जाता है कि अर्जी कबूल करने लायक है या नहीं और अर्जी कबूल हो जाती है उनको सर्वेंट ऑफ गॉड यानी भगवान का सेवक कहा जाता है, इस प्रोसेस में अर्जी  रिजेक्ट  भी हो जाती है.

ब्लेस्ड यानी ‘धन्य’ हो जाना

सेंट बनने के लिए सबसे जरूरी शर्त है कि ये साबित हो जाए व्यक्ति स्वर्ग में है. इसको देखने का भी एक तरीका है वो ये कि मौत के बाद उस व्यक्ति के नाम पर कोई चमत्कार हुआ है या नहीं. कम से कम दो चमत्कार ज़रूरी हैं. जैसे अचानक किसा का ठीक हो जाना, इसके बाद जेम्स को ब्लेस्ड(blessed- धन्य) की पदवी मिल जाएगी.ब्लेस्ड होने की पूरी प्रक्रिया को ही बीटिफिकेशन कहते हैं. इसके बाद जेम्स को एक सीमित जगह पर या क्षेत्र में पूजा जा सकता है. लेकिन सेंट अभी भी नहीं कहा जाएगा. सेंट की पूजा हर जगह हो जाती है.

संत बनने की तरफ आखिरी कदम

संत बनने के लिए एक और चमत्कार का होना जरूरी होता है,  इस चमत्कार की जांच-पड़ताल भी पिछले स्टेप जैसी ही होती है. इसे पूरा करने के बाद पोप सेंट घोषित कर देते हैं.  इसके बाद कैननाइजेशन पूरा होता है.