
हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों करोड़ों लोगों का लंबा इंतजार अब खत्म होने जा रहा है. सौ साल पहले काशी के गंगा घाट से चोरी हुई मां अन्नपूर्णा की मूर्ति बनारस वापस आ रही है. मां अन्नपूर्णा की मूर्ति 14 नवंबर को काशी में वापस आएगी. जिसके बाद 15 नवंबर को श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में इसकी स्थापना की जाएगी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ काशी में इस प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे.
दिल्ली में होगा मूर्ती का भव्य स्वागत
कनाडा से एक सदी से अधिक समय के बाद भारत वापस लाई गई देवी अन्नपूर्णा की एक प्राचीन मूर्ति, अपने मूल स्थान - वाराणसी, उत्तर प्रदेश में काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए 11 नवंबर को दिल्ली से 800 किमी से अधिक की यात्रा शुरू करेगी. दिल्ली से लेकर काशी तक रास्ते भर भव्य इसका स्वागत किया जाएगा. उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से गुजरते हुए यह भव्य यात्रा चार दिनों में काशी पहुंचेगी. वहीं केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी मंत्री ने कहा कि 15 नवंबर को इसकी स्थापना होगी. पांच दिवसीय 'शोभा यात्रा' में उत्तर प्रदेश के मंत्री मूर्ति के साथ जाएंगे, जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने 5 अक्टूबर को प्राप्त किया था.
कनाडा के रेजिना विश्वविद्यालय में रखी थी मूर्ती
माता अन्नपूर्णा देवी यात्रा के संबंध में बुधवार को सीएम योगी आदित्यनाथ ने बताया कि सौ वर्ष पहले माता अन्नपूर्णा की यह मूर्ति वाराणसी से चोरी हुई थी और विभिन्न हाथों से होते हुए अंततः कनाडा के रेजिना विश्वविद्यालय पहुंची थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रयासों से यह प्रतिमा फिर से हमें प्राप्त हो रही है. कनाडा के रेजिना विश्वविद्यालय से केंद्र सरकार को प्राप्त हुई माता अन्नपूर्णा की मूर्ति 11 नवंबर को गोपाष्टमी तिथि पर दिल्ली से सुसज्जित गाड़ी से वाराणसी के लिए रवाना होगी और फिर वाराणसी स्थित काशी विश्वनाथ धाम में 15 नवंबर को देवोत्थान एकादशी के पावन अवसर पर प्राण प्रतिष्ठित किया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से कनाडा सरकार ने इसे भारत को वापस किया है.
कनाडा ने क्यों वापस की मूर्ति?
अन्नपूर्णा भोजन की देवी है. बनारस शैली में उकेरी गई 18वीं सदी की मूर्ति, कनाडा के रेजिना विश्वविद्यालय में मैकेंज़ी आर्ट गैलरी में संग्रह का हिस्सा थी. यूनिवर्सिटी ऑफ रेजिना के वाइस चांसलर थॉमस चेस ने कहा, "एक विश्वविद्यालय के रूप में, हमारी जिम्मेदारी है कि हम ऐतिहासिक गलतियों को ठीक करें और जहां भी संभव हो, उपनिवेशवाद की हानिकारक विरासत को दूर करने में मदद करें." दरअसल 2019 में, विन्निपेग स्थित कलाकार दिव्या मेहरा ने इस मूर्ति को देखा था. अभिलेखों में देखने पर, उन्हें पता चला कि ये मूर्ति 1913 में एक मंदिर से चोरी हो गई थी.