
उत्तर प्रदेश के झांसी शहर का नाम जब भी आता है तो सबसे पहले दिमाग में रानी लक्ष्मीबाई का नाम आता है. लेकिन झांसी और एक वजह से प्रसिद्ध है. और यह है एक खास मंदिर. चैत्र नवरात्रि के पावन अवसर पर हम आपको बता रहे हैं झांसी के रहस्यमयी मंदिर की कहानी. यह एक विशेष व चमत्कारी मंदिर माना जाता है.
इस मंदिर में देवी मां की एक ही प्रतिमा स्थापित है लेकिन यह दिन के तीनों पहर में अलग-अलग स्वरूप बदलती है. श्रद्धालु मां के इस मंदिर में बदलते स्वरूपों का दर्शन करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. इस मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना बताया जाता है जिसको लोग 'मां लहर देवी मंदिर' के नाम से जानते हैं.
चंदेल राज के समय बना मंदिर
झांसी महानगर के सीपरी में स्थापित मां लहर देवी मंदिर का निर्माण बुंदेलखंड के शक्तिशाली चंदेल राज के समय हुआ. प्राचीन काल में यहां के राजा परमाल देव थे. राजा के दो भाई थे, जिन्हें आल्हा -ऊदल के रूप में जाता था. महोबा की रानी मछला को पथरीगढ़ (जो आज झांसी जिले के नाम से जाना जाता है)का राजा ज्वाला सिंह अपहरण कर ले गया था. रानी को वापस लाने व राजा ज्वाला सिंह से युद्ध लड़ने जब आल्हा-ऊदल महोबा से पथरीगढ़ जा रहे थे तो रास्ते में एक पहाड़ी पर रुके. यहां पर वह अपनी कुलदेवी भी साथ में लेकर आए थे.
मानता है कि वह अपनी कुलदेवी को हर युद्ध में साथ में लेकर ही जाते थे. बताया जाता है की रात्रि में जब लोग यहां पर रुके तो माता ने युद्ध जीतने के लिए आल्हा से उनके बेटे इंदल की बलि देने की बात की. इसके बाद आल्हा ने इसी मंदिर में अपने भाई ऊदल के सामने अपने पुत्र इंदल की बलि चढ़ा दी थी. माता ने प्रसन्न होकर इंदल को पुनः जीवित कर दिया था. इसके पश्चात माता के प्रति लोगों की आस्था काफी बढ़ गई. आल्हा ने जिस पत्थर पर पुत्र की बलि दी थी वह आज भी मंदिर परिसर में सुरक्षित है.
मनिया देवी के नाम से मशहूर
लहर देवी को ‘मनिया देवी’ के रूप में भी जाना जाता है. जानकारों का कहना है कि मनिया देवी मैहर की मां शारदा हैं. यह मंदिर शिलास्तंभों पर खड़ा हुआ है. हर एक स्तंभ पर आठ योगिनी अंकित हैं. इस प्रकार कुल चौसठ योगिनी के स्तंभों पर मंदिर टिका है. सभी गहरे लाल सिंदूरी रंग में रंगे हैं. मंदिर परिसर में भगवान शंकर, शीतला माता, अन्नपूर्णा माता, भगवान हनुमानजी और काल भैरव का भी मंदिर है.
तीन बार रूप बदलती हैं मां
लहर देवी की प्रतिमा दिन में तीन बार रूप बदलती है. सुबह बालिका के रूप में में दोपहर में युवावस्था में और सायंकाल में देवी मां प्रौढ अवस्था में नजर आती है. तीनों समय मां का अलग- अलग श्रृंगार किया जाता है. उल्लेखनीय है कि कालांतर में पड़ नदी का पानी पूरे क्षेत्र में पहुंच जाता था. नदी की लहरें माता के चरणों को स्पर्श करती थीं इसलिए इसका नाम ‘लहर देवी' पड़ गया.
यूं तो यहां वर्षभर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. लेकिन नवरात्रि में विशेष भीड़ होती है. नवरात्रि की अष्टमी को रात्रि में भव्य आरती का आयोजन किया जाता है. बताया जाता है कि इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की हर प्रकार की मनोकामना पूर्ण होती है.
(अमित श्रीवास्तव की रिपोर्ट)