

कैलाश मानसरोवर यात्रा (Kailash Mansarovar Yatra) लगभग पांच सालों के बाद फिर से शुरू हो गई है. यह धार्मिक यात्रा अगस्त 2025 तक चलेगी. कैलाश मानसरोवर यात्रा 2020 में कोविड-19 महामारी और भारत-चीन सीमा पर उत्पन्न तनाव के कारण रोक दी गई थी.
कैलाश मानसरोवर यात्रा के दो प्रमुख मार्ग
कैलाश मानसरोवर यात्रा के दो प्रमुख मार्ग हैं. पहला मार्ग उत्तराखंड से शुरू होता है, जो नैनीताल, पिथौरागढ़, धारचूला, तवाघाट, गुंजी, काला पानी, नाभि धांग और लिपुलेख पास होते हुए तकलाकोट, पनाखा और डार्चेन से कैलाश मानसरोवर पहुंचता है. दूसरा मार्ग सिक्किम से शुरू होता है, जो गंगटोक, नथुला धारा, कंगवा और जोंगबा होते हुए कैलाश मानसरोवर पहुंचता है. सिक्किम मार्ग को सुरक्षित और सुविधाजनक माना जाता है क्योंकि यहां की सड़कें अच्छी बनी हैं.
धार्मिक और पौराणिक महत्व
कैलाश पर्वत का धार्मिक और पौराणिक महत्व है. सनातन धर्म में इसे शिव का निवास स्थान माना जाता है. बौद्ध धर्म में इसे शाक्य मुनि बुद्ध का स्वरूप माना गया है, जबकि जैन धर्म में इसे अष्टापद पर्वत कहा जाता है. यहां पहले तीर्थंकर ऋषभदेव ने निर्वाण प्राप्त किया था.
कैलाश पर्वत से जुड़ी अद्भुत कहानियां
कैलाश पर्वत को धरती का केंद्र माना जाता है. इसके चारों ओर अलौकिक शक्ति की धारा बहती है. यहां पर चढ़ाई करने में कोई भी पर्वतारोही सफल नहीं हो सका है. माउंट एवरेस्ट की तुलना में कैलाश पर्वत की चढ़ाई कठिन मानी जाती है. कैलाश पर्वत की ऊंचाई 6714 मीटर है और यह हमेशा बर्फ से ढका रहता है. कैलाश पर्वत के रहस्यों को विज्ञान भी पूरी तरह से समझ नहीं पाया है. यहां की ऊर्जा और अद्भुत कहानियां इसे और भी रहस्यमयी बनाती हैं. माना जाता है कि भगवान शिव की मर्जी के बिना कोई यहां नहीं पहुंच सकता. कैलाश मानसरोवर यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव भी प्रदान करती है.