

सावन के पवित्र महीने में पूरे देश भर में कावड़ यात्रायें निकाली जा रहीं हैं. लाखों श्रद्धालु भक्ति भावना के साथ भगवान भोलेनाथ को रिझाने के लिए जल लेकर पहुंच रहे हैं. झांसी में एक अनोखी कावड़ यात्रा निकाली गई. इसका मकसद आस्था के साथ पर्यावरण को संरक्षित करना बताया गया. इस कांवड़ यात्रा में जल की जगह कांवड़िए वृक्ष लेकर भगवान भोलेनाथ के दरबार में पहुंचे. साथ ही भविष्य में धरती को संरक्षित करने के लिए भी इस कावड़ यात्रा में कई तरीकों से संदेश दिया गया.
उत्तर प्रदेश के झांसी में शनिवार को रानी लक्ष्मी बाई पार्क से कांवड़ यात्रा का शुभारंभ हुआ. इसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए. ये अनोखी कांवड़ यात्रा लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनी रही. इस अनोखी कावड़ यात्रा में एक ओर डीजे पर पर्यावरण व धार्मिक गीतों पर लोग झूम रहे थे. वहीं इस कांवड़ यात्रा को इसमें चलने वाले सैकड़ों कांवड़िए इसे अनोखा बना रहे थे.
ये कांवड़िए अपने साथ कलश लेकर चल रहे थे. उन में जल की जगह कई प्रकार के पेड़-पौधे थे. साथ ही यात्रा में बग्गियों पर भगवान के स्वरूप के बजाय वृक्षों के स्वरूप जल माता का स्वरूप आदि को बैठाया गया था. इस कांवड़ यात्रा में प्लास्टिक राक्षस और धुंआ राज भी साथ-साथ चल रहे थे. कांवड़िए इस यात्रा के जरिए लोगों को प्रकृति को बचाने का संदेश दे रहे थे.
इस अनोखी यात्रा के संयोजक डॉ. जितेन्द्र कुमार तिवारी ने बताया कि यह कांवड़ यात्रा सिर्फ एक शोभायात्रा मात्र नहीं है बल्कि यह समाज की सोच में स्थायी परिवर्तन लाने का हमारा एक प्रयास भी है. हमने आस्था को माध्यम बनाया लेकिन उद्देश्य केवल धार्मिक नहीं है. यह एक हरित आंदोलन का बीजारोपण है. जितेन्द्र कुमार तिवारी ने कहा, पर्यावरण संरक्षण केवल भाषणों या अभियानों से नहीं होगा. जब तक हम इसे अपने जीवन, अपनी परंपराओं और अपनी भावनाओं से नहीं जोड़ेंगे. यह कांवड़ यात्रा दरअसल हमारे भविष्य की सांसों की रक्षा यात्रा है. हमारा प्रयास रहेगा कि यह यात्रा एक परंपरा बने. हर साल, हर सावन में झांसी से एक संदेश निकले: प्रकृति बचाओ, भविष्य बचाओ.
इस यात्रा में जन-जागरूकता को रोचकता और प्रतीकों के साथ जन-मन तक पहुंचाने का प्रयास किया गया. झांसी में निकाली गई अनोखी कांवड़ यात्रा में प्लास्टिक प्रदूषण के प्रतीक प्लास्टिकासुर और धुआं-सुर, ई-कचरे के राक्षस स्वरूप तो दूसरी ओर धरती माता, जल देवी, वृक्ष देवता और स्वच्छता नायिकाएं भी थीं. इन सभी ने यात्रा को एक चलता-फिरता इको-थियेटर बना दिया. बालिकाओं की झांकियां, पौधों से सजी कांवड़, पारंपरिक वेशभूषा और नारों की गूंज ने पूरे शहर में एक अनुपम वातावरण बना दिया.
झांसी में हुए इस अनोखी कांवड़ यात्रा में खास बात यह रही कि इसमें ज़ीरो वेस्ट सिद्धांत को बताते हुए लोगों को प्रेरित किया गया कि वे घर से पानी लाएं. पत्तों की थालियों में प्रसाद लें और आयोजन के बाद कचरे को अलग-अलग सेग्रिगेट करें. इस प्रयास ने यह साबित कर दिया. इस यात्रा का समापन सिद्धेश्वर मंदिर में हुआ. समापन के पहले कांवड़ यात्रा का नगर के कई क्षेत्रों में भ्रमण हुआ जहां पर लोगों ने इसका स्वागत भी किया.
झांसी में निकाली गई इस अनोखी कांवड़ यात्रा में बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हुईं. कांवड़ यात्रा में शामिल महिला संगीता राय ने बताया कि इसमें आकर्षण का केंद्र सबसे पहले पर्यावरण को बचाना कैसे है? इस यात्रा के माध्यम से ये बताया गया कि एक पेड़ जरूर लगाना चाहिए. सावन का अभी पवित्र महीना चल रहा है और लोगों को समझना धर्म एक अच्छा माध्यम है.
कावड़ यात्रा में शामिल प्रतिमा ओझा ने बताया कि जिस प्रकार से पेडों की कटाई हो रही है. हमारे जो जीव जंतु असुरक्षित हो रहे है. उनका स्वरूप बनाकर ये संदेश दिया है कि पेड़ बचाएं पर्यावरण सुरक्षित करें. इसमें काफी संख्या में महिलाएं व स्कूली बच्चे शामिल हुए. वहीं यात्रा में शामिल प्रिया ने बताया कि लोगों को जागरूक करना बड़ी मुश्किल का काम है. इसलिए लोगों से अपील करती हूं कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएं. यात्रा में सबसे ज्यादा आर्कषण का केंद्र प्रदूषण के लिए स्वरूप बनाया था. प्लास्टिक का इस्तेमाल मत करें. कचड़ा हर जगह न फैलाएं.
(झांसी से अजय झा की रिपोर्ट)