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Kanwar Yatra 2025: इन नियमों को नहीं माना तो अधूरी रह जाएगी आपकी भक्ति! जानिए हर कांवड़िया के लिए जरूरी नियम!

हिंदू पुराणों के अनुसार, सावन में समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया, जिससे उनका गला नीला पड़ गया और उन्हें 'नीलकंठ' नाम मिला. गंगाजल चढ़ाने से शिव को शांति मिलती है और भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. यह यात्रा न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का भी प्रतीक है.

कांवड़ यात्रा 2025 कांवड़ यात्रा 2025

भगवान शिव की भक्ति में डूबने का समय आ गया है! सावन का पवित्र महीना शुरू होने वाला है और इसके साथ ही कांवड़ यात्रा 2025 की धूम भी मचने वाली है. हर साल लाखों शिव भक्त कांवड़ लेकर हरिद्वार, गंगोत्री, गोमुख और सुल्तानगंज जैसी पवित्र जगहों से गंगाजल लाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पवित्र यात्रा को सफल बनाने के लिए कुछ सख्त नियमों का पालन करना जरूरी है? 

कांवड़ यात्रा 2025: कब और क्यों?
सावन का महीना, जो भगवान शिव को समर्पित है, 11 जुलाई 2025 से शुरू होकर 9 अगस्त 2025 तक चलेगा. इस दौरान कांवड़ यात्रा 11 जुलाई से शुरू होगी और सावन शिवरात्रि (23 जुलाई 2025) तक चलेगी, हालांकि कई राज्यों में यह पूरे सावन महीने तक चलती है. यह यात्रा भगवान परशुराम ने शुरू की थी, जिन्होंने हरिद्वार से गंगाजल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाया था. मान्यता है कि इस यात्रा से शिव भक्तों के सारे कष्ट दूर होते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. लेकिन इस यात्रा का फल तभी मिलता है, जब आप इसके नियमों का पूरी तरह पालन करते हैं. 

कांवड़ यात्रा के सख्त नियम

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1. पवित्रता है पहली शर्त: कांवड़ यात्रा शुरू करने से पहले मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहें. नफरत, जलन या नकारात्मक विचार आपकी भक्ति को कमजोर कर सकते हैं.

2. कांवड़ को कभी जमीन पर न रखें: गंगाजल से भरी कांवड़ पवित्र है. इसे कभी भी जमीन पर नहीं रखना चाहिए. अगर रुकना हो, तो इसे साफ लकड़ी या लोहे के स्टैंड पर या पेड़ पर लटकाएं. अगर गलती से कांवड़ जमीन को छू जाए, तो नया जल लाकर यात्रा फिर से शुरू करें.

3. मांस-मदिरा से रहें दूर: यात्रा के दौरान मांस, लहसुन, प्याज, शराब, सिगरेट या किसी भी नशीले पदार्थ का सेवन सख्त मना है. यह शिव भक्ति के खिलाफ माना जाता है. 

4. साफ-सफाई का ध्यान रखें: हर दिन स्नान करें और साफ कपड़े पहनें. शौच के बाद गंगाजल से शुद्धिकरण करें या स्नान करके ही कांवड़ को छुएं.

5. चमड़े से बनें दूरी: यात्रा के दौरान चमड़े की वस्तुओं का स्पर्श वर्जित है, क्योंकि यह अपवित्र माना जाता है.

6. केसरिया वस्त्रों की शक्ति: अधिकांश कांवड़िए केसरिया कपड़े पहनते हैं, जो त्याग, भक्ति और तप का प्रतीक है. यह भगवान शिव से जोड़ता है और यात्रा को और पवित्र बनाता है.

7. 'हर-हर महादेव' का जाप: यात्रा के दौरान "हर-हर महादेव" और "बम-बम भोले" का जाप करते रहें. यह आपकी भक्ति को और मजबूत करता है.

8. डाक कांवड़ की चुनौती: डाक कांवड़ सबसे कठिन रूप है, जिसमें भक्त 24 घंटे में बिना रुके गंगाजल लेकर शिव मंदिर तक पहुंचते हैं. यह यात्रा भक्ति और आत्म-अनुशासन का प्रतीक है.

9. पर्यावरण का सम्मान: कांवड़ यात्रा के दौरान कचरा न फैलाएं. पुन: उपयोग योग्य बोतलें और थैले इस्तेमाल करें.

10. स्थानीय नियमों का पालन: उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कांवड़ की ऊंचाई (पैदल: 7 फीट, झांकी: 12 फीट) और वैध पहचान पत्र अनिवार्य हैं. डीजे की ऊंचाई और अश्लील गानों पर भी प्रतिबंध है.

कांवड़ यात्रा क्यों है खास?
हिंदू पुराणों के अनुसार, सावन में समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया, जिससे उनका गला नीला पड़ गया और उन्हें 'नीलकंठ' नाम मिला. गंगाजल चढ़ाने से शिव को शांति मिलती है और भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. यह यात्रा न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का भी प्रतीक है.

कांवड़ यात्रा सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि भक्ति, अनुशासन और समर्पण का संगम है. हर साल 3-4 करोड़ भक्त हरिद्वार, गंगोत्री और गोमुख जैसे तीर्थ स्थानों पर पहुंचते हैं. यह यात्रा भगवान शिव के प्रति अटूट श्रद्धा का प्रतीक है. तो, अगर आप इस साल कांवड़ यात्रा में शामिल होने जा रहे हैं, तो इन नियमों को जरूर याद रखें.