

सावन का पवित्र महीना शुरू होने में अब बस कुछ ही दिन बचे हैं. 11 जुलाई से सावन शुरू हो जाएगा. सावन शुरू होते ही कांवड़ यात्रा शुरू हो जाएगी. दिल्ली से लेकर उत्तराखंड तक, सभी जगह कांवड़ यात्रा की तैयारी चल रही है. भक्तों के लिए जगह-जगह पर विशेष इंतजाम किए जा रहे हैं.
हर साल सावन के महीने में लाखों यात्री पैदल चलकर हरिद्वार पहुंचते हैं. हरिद्वार में अपने कांवड़ में गंगाजल भरकर अपनी-अपनी जगहों पर वापस लौट जाते हैं. कांवड़ यात्रा भारत की सबसे कठिन धार्मिक यात्रा में से एक मानी जाती है. दिल्ली से हरिद्वार मार्ग फिर से बम-बम भोले के जयकारों से गूंजने वाला है.
दिल्ली से हरिद्वार के मार्ग पर कांवड़ यात्रियों की संख्या बढ़ने लगी है. वैसे तो कांवड़ यात्रा 11 जुलाई को शुरू होने वाली है लेकिन भोले के भक्तों को भला रोक कौन सकता है? डीजे की धुन पर नाचते गाते युवा भोले निकल पड़े हैं. कुछ हरिद्वार की ओर बढ़ रहे हैं तो कुछ हरिद्वार से कांवड़ में जल भरकर अपने-अपने शिवालय मंदिरों की ओर जा रहे हैं.
कांवड़ियों का जोश
कांवड़ यात्रा में रिश्तों के बाहर से देखने को मिलते हैं. 17 साल का शिवम अपने 18 साल के दोस्त गौरव के साथ कांवड़ यात्रा पर निकला है. गौरव के लिए यह पहली यात्रा है. दोनों छह साल के दोस्त पहली बार एक साथ कांवड़ लेकर निकले हैं. गौरव ने कहा कि वो अपने मां-बाप की लंबी उम्र के लिए महादेव का आशीर्वाद पाने के लिए कांवड़ लेकर निकला है. शिवम ने कहा कि दोस्त के मकसद में साथ देने के लिए वो तैयार हो गया.
आस्था और श्रद्धा के भाव में रिश्ते और ज्यादा अच्छे हो जाते हैं. सास-बहू के रिश्तों कड़वाहट की ख़बरें समाज के लिए सामान्य हैं लेकिन कांवड़ यात्रा में एक बार तो अपनी सास के लिए श्रवण कुमार बन गई. आरती अपने बुजुर्ग सास को हापुड़ से अपने कंधे पर पालकी में लेकर आई. हरिद्वार में गंगा स्नान करवाया और आप अपनी बेटी के साथ उसी पालकी में अपनी सास को लेकर फिर से हापुड़ चल पड़ी है. समाज में एक तरफ सास-बहू का रिश्ता एक दूसरे के लिए बोझ बन जाता है. वहीं यहां एक बहू ने अपनी नन्ही बेटी के साथ कंधे पर सास का वज़न उठा लिया. आरती बताती हैं कि अपनी मां को गंगा स्नान करवाना था और भोले के आशीर्वाद से घर भी ले जाएंगे.
कांवड़ के अनोखे रंग
कांवड़ यात्रा में ऐसे युवा भी जल लेकर निकले हैं जिनके अंदर देश की सेवा करने की इच्छा है और फ़ौज में भर्ती होने का जज़्बा है. देव अंकुर करन और विजय अग्नि वीर बनने की तैयारी कर रहे हैं और पहली बार कांवड़ यात्रा में शामिल हुए हैं. ये चारों दोस्त बताते हैं कि समय मिलने पर फ़ौज में भर्ती होने के लिए फिजिकल तैयारी भी कर रहे हैं लेकिन इस बार महादेव का आशीर्वाद लेने के लिए कांवड़ लेकर चल पड़े हैं.
ये कावड़ यात्रा के रंग बेहद अनोखे होते हैं. भक्तों के भाव के आगे भगवान भी नतमस्तक हो जाते हैं. भोले की भक्ति में मगन भक्तों के साथ महादेव भी चश्मा गमछा पहनकर यात्रा में शामिल हो गए हैं. पलवल से आए मनोज महादेव को लेकर पहले हर की पौड़ी पर गया. वहां भोले को स्नान करवाया और अब कंधे पर बिठाकर भोले बाबा को लेकर फिर से अपने मंदिर की ओर चल पड़े हैं. मनोज कहते हैं भोले बाबा के भक्त हैं और भोले को कंधे पर ही लेकर पूरा सफ़र तय करेंगे.
क्या है कांवड़ यात्रा?
कांवड़ यात्रा एक धार्मिक यात्रा है जो हर साल सावन के महीने में होती है. भगवान शिव के भक्तों को ही कांवड़िया कहा जाता है. कांवड़ यात्रा में शिव भक्त गंगा से जल भरते हैं और उसे पैदल चलकर अपने गाँव या शहर के शिव मंदिरों में चढ़ाते हैं. इस जल को गंगाजल कहा जाता है और यह भगवान शिव को चढ़ाया जाता है.
इस धार्मिक यात्रा को आमतौर पर युवा करते है. इसके अलावा महिलाएं भी इस यात्रा को करती हैं. सभी भक्त भगवा रंग के कपड़े पहनते हैं और एक लंबी लकड़ी पर दोनों ओर जल से भरी बाल्टियां या मटके लटकाकर चलते हैं. भक्त गंगाजल भरने के लिए हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख और सुल्तानगंज जैसे गंगा किनारे के स्थानों पर जाते हैं. कहा जाता है कि इस कठिन यात्रा को करने से भगवान शिव खुश होते हैं.
(आशुतोष की रिपोर्ट)