scorecardresearch

Kanwar Yatra: 14 जुलाई से शुरू हो रही है कांवड़ यात्रा, समुद्र मंथन से जुड़ी है इसकी कहानी, जानें महत्व

Kanwar Yatra: कांवड़ यात्रा की शुरुआत श्रावण मास की शुरुआत से ही हो जाएगी. दो साल बाद यह यात्रा की जा रही है और इसलिए उत्तराखंड में जोर-शोर से तैयारी चल रही है.

कांवड़ यात्रा (Photo: Unspalsh) कांवड़ यात्रा (Photo: Unspalsh)
हाइलाइट्स
  • 2 साल बाद हो रही है कांवड़ यात्रा 

  • श्रावण मास में होती है कांवड़ यात्रा 

कांवड़ यात्रा का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है. यह भगवान शिव के भक्तों की एक वार्षिक तीर्थयात्रा है. इस यात्रा में भक्तजन भगवान शिव को खुश करने के लिए कंधे पर कांवड़ रखकर कई दिनों तक नंगे पैर चलते हैं. इन भक्तों को 'कांवरिया' के रूप में जाना जाता है. 

कांवड़ यात्रा में भक्त गंगा नदी का पवित्र जल लेने के लिए हरिद्वार, गौमुख, उत्तराखंड में गंगोत्री और बिहार के सुल्तानगंज जैसे तीर्थ स्थानों की यात्रा करते हैं. फिर, वे इसे लेकर अपने-अपने राज्यों में अपने घर लौटते हैं. सभी चलते-फिरते और रुक-रुक कर आराम करते हुए आते हैं. फिर सबसे पहले गंगा जल स्थानीय शिव मंदिरों में चढ़ाया जाता है जैसे उत्तर प्रदेश में पुरा महादेव मंदिर और औघरनाथ, प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर, और झारखंड के देवघर में बाबा बैद्यनाथ मंदिर.

2 साल बाद हो रही है कांवड़ यात्रा 
कोविड-19 महामारी के कारण दो साल के अंतराल के बाद इस साल कांवड़ यात्रा होने जा रही है. इस साल श्रावण मास में 14 जुलाई से 26 जुलाई तक कांवड़ यात्रा आयोजित होने वाली है. 

आपको बता दें कि, कांवड़ यात्रा का नाम 'कांवर' से लिया गया है. यह बांस से बनी होती है जिसके दोनों छोर पर गंगाजल से भरे डिब्बे लगे होते हैं. भक्त इस कांवड़ को लेकर मीले पैदल चलकर आते हैं और अपने गांव-घर के मंदिर में पहुंचकर शिवजी का अभिषेक करते हैं. 

कांवड़ यात्रा का धार्मिक महत्व
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, गंगा नदी भगवान शिव की जटाओं से निकलती है, और इसलिए, दोनों के बीच गहरा संबंध है. दरअसल, कांवड़ यात्रा का संबंध समुद्र मंथन से है. बताया जाता है कि जब समुद्र से अमृत के साथ विष निकला, तो दुनिया जलने लगी थी. 

ऐसे में, भगवान शिव ने मानव जाति की रक्षा करने के लिए विष पिया. लेकिन, इससे उनका गला नीला हो गया. इसके बाद त्रेता युग में, शिव के महान भक्त राजा रावण ने कांड़ में गंगाजल लाकर पुरा महादेव में एक शिव लिंग पर पवित्र गंगा जल डाला. जिससे भगवान को जहर की नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिली. इसलिए भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक किया जाता है. 

मान्यता है कि ऐसी करने से मानव जीवन पाप मुक्त हो जाता है. आपके घर में हमेशा खुशियां बनी रहती हैं और इंसान को जीवन में तरक्की मिलती है. 

श्रावण मास में होती है यात्रा 
कांवड़ यात्रा आमतौर पर श्रावण के महीने (जुलाई और अगस्त के बीच) में की जाती है. कांवरियां आमतौर पर अलग-अलग भगवा रंग के वस्त्र पहनते हैं और शिव की महिमा के लिए 'बोल बम' का जाप करते हुए चलते हैं. तीर्थयात्रियों के आराम करने  करने के लिए विभिन्न स्थानों पर उनके लिए शिविर लगाए जाते हैं. 

एक बार जब तीर्थयात्री अपने गंतव्य पर पहुंच जाते हैं, तो गंगा जल का उपयोग श्रावण महीने में 13वें दिन (त्रयोदशी) शिवलिंग को स्नान करने के लिए किया जाता है. जिसे सावन की शिवरात्रि के रूप में भी जाना जाता है. इस वर्ष यह पर्व 26 जुलाई मंगलवार को पड़ रहा है. 

रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस साल कांवड़ यात्रा के लिए हरिद्वार और आसपास के इलाकों को 12 सुपर जोन, 31 जोन और 133 सेक्टरों में बांटा गया है और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए करीब 9,000-10,000 सुरक्षाकर्मियों को तैनात किए जाने की संभावना है.