scorecardresearch

Purnagiri Temple: पूर्णागिरी धाम में हुआ मेले का शुभारंभ, जानिए इस मंदिर का पौराणिक महत्व

उत्तराखंड के चम्पावत में टुनकपुर के पास स्थित, मां पूर्णागिरी धाम का बहुत ज्यादा धार्मिक और पौराणिक महत्व है. यहां हर साल माता का भव्य मेला लगता है जो कई महीनों तक चलता है.

Maa Purnagiri Temple (Photo: Instagram/@maapurnagiri) Maa Purnagiri Temple (Photo: Instagram/@maapurnagiri)
हाइलाइट्स
  • माता सती से जुड़ा है किस्सा

  • हर साल लगता है भव्य मेला

उत्तर भारत के सुप्रसिद्ध शक्तिपीठ, पूर्णागिरी में खास मेले का शुभारंभ हो गया है. मां पूर्णागिरि धाम में आयोजित होने वाले इस वार्षिक मेले में हर साल तीस लाख से भी ज्यादा श्रद्धालु आते हैं. माता के जयकारों के बीच कुमाऊं मंडल के आयुक्त दीपक रावत ने मेले के आधार शिविर ठूलीगाड़ में विधि-विधान से पूजा पाठ एवं फीता काटकर इसका शुभारंभ किया. सरकार और प्रशासन इस मेले में व्यवस्थाएं 15 जून तक संभालेगा. 

आयुक्त दीपक रावत ने अपनी धर्मपत्नी के साथ माता के मंदिर तक पैदल यात्रा की और माता के दर्शन कर विधि विधान से पूजा पाठ संपन्न किया. इस अवसर पर उन्होंने प्रदेश व जनपद निवासियों के लिए सुख-शान्ति एवं खुशहाली की मंगल कामना की. आयुक्त रावत ने कहा कि देश के सुप्रसिद्ध माता पूर्णागिरि धाम मेले का शुभारंभ करना उनके लिए सौभाग्य की बात है. 

मेले में लोगों के लिए सुविधाएं 
आयुक्त ने दावा किया कि श्रद्धालुओं के लिए प्रशासन की ओर से मेले में बेहतर सुविधाएं विकसित कराई गई हैं और आगे भी प्रयास किए जाएंगे. उन्होंने आगे कहा कि मां पूर्णागिरि मेला उत्तर भारत का प्रसिद्ध मेला है जहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु विभिन्न स्थानों से आते हैं. उन्हें प्रत्येक सुविधा मुहैया कराना जिला प्रशासन की प्राथमिकता है. आयुक्त ने मेला क्षेत्र में पथ, प्रकाश, सड़क, बिजली, पानी, शौचालय, पेयजल सहित विभिन्न व्यवस्थाओं का जायजा लिया. 

साथ ही, संबंधित विभागों के अधिकारियों को सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त रखने के निर्देश दिए. हालांकि, सरकारी आंकड़ो के अनुसार पिछले साल केवल तीन महीने में यहां तीस लाख श्रद्धालु आए थे. इस साल संख्या और बढ़ने की उम्मीद है. भारत भर से लोग पुर्णागिरी मंदिर में दर्शन करने आते है. 

पूर्णागिरी धाम की महिमा 
हर साल नवरात्र से पहले पूर्णागिरी धाम का मेला शुरू हो जाता है. इस स्थान के बारे में दावा किया जाता है कि माता सती के पिता दक्ष ने जब यज्ञ में महादेव को न बुलाकर उका अपमान किया तो नाराज सती ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. उस समय शंकर भगवान माता सती के शरीर को लेकर विचरण कर रहे थे. महादेव को इससे उबारने के लिए भगवान विष्णूने तीर छोड़ा जिसस माता सती का शरीर छिन-भिन्न हो गया और उनके शरीर के अंग पृथ्वी पर अलग-अलग स्थान पर गिरे. 

उस समय माता सती की नाभि जिस जगह पर गिरी थी उस जगह को आज पूर्णागिरी धाम के नाम से जाना जाता है. जहां-जहां माता के अंग गिरे वह हर स्थान शक्तिपीठ बन गया और सबको अलग-अलग नाम मिला. पूर्णागिरी भी शक्तिपीठ है जहां लोग मन्नत लेकर आते हैं. अब सालों से श्रद्धालुओं का मेला यहां लगता है. मंदिर तक जाने के लिए तीन किलोमीटर तक सीढ़ीनुमा पहाड़ पर पैदल चलना पड़ता है. लेकिन जो यहां पहुंचता उसके सब काम मां बना देती है. 

(राजेश छाबड़ा की रिपोर्ट)