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Pitru Paksha 2025: जानिए कौन होते हैं पितृ... क्यों की जाती है पितरों की पूजा... क्या हैं पूजा के नियम और सावधानियां

आचार्य शैलेंद्र पांडे के अनुसार, पितृ वे दिवंगत पूर्वज हैं जो मृत्यु के बाद सूक्ष्मलोक में निवास करते हैं और अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं.

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पितृपक्ष हिंदू धर्म में पूर्वजों को याद करने, उनके प्रति आभार व्यक्त करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए विशेष समय होता है. इस अवधि में दिवंगत पितरों की स्मृति में श्राद्ध, तर्पण और दान-पुण्य किए जाते हैं. मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ धरती पर आते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं.

पितृ कौन हैं और क्या है पितृपक्ष का महत्व
आचार्य शैलेंद्र पांडे के अनुसार, पितृ वे दिवंगत पूर्वज हैं जो मृत्यु के बाद सूक्ष्मलोक में निवास करते हैं और अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं. पितृपक्ष के दौरान पितृ अपनी संतान और वंशजों की प्रगति, सुख-समृद्धि और कल्याण के लिए धरती पर आते हैं.

पितृपक्ष का महत्व इस बात में है कि यह हमें अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर देता है. इस समय किए गए श्राद्ध, तर्पण और दान को पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है.

पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध की विधि
पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध का विशेष महत्व है. तर्पण का अर्थ है पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए जल अर्पित करना.

तर्पण की विधि:

  • तर्पण दक्षिण दिशा की ओर मुख करके करें.
  • दोपहर के समय जल में काले तिल मिलाकर अर्पित करें.
  • तर्पण के समय हाथ में कुश घास धारण करना अनिवार्य है.
  • तर्पण के दौरान पितरों के नाम का स्मरण करते हुए प्रार्थना करें.

श्राद्ध की विधि:

  • जिस तिथि को पूर्वज का देहांत हुआ था, उसी तिथि पर श्राद्ध करें.
  • श्राद्ध के दिन अन्न, वस्त्र, फल, दक्षिणा का दान करें.
  • किसी निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराना अत्यंत शुभ माना जाता है.
  • पितृ विसर्जन अमावस्या के दिन विशेष पूजा, दान-पुण्य और तर्पण का आयोजन होता है.

पितृपक्ष में सात्विक आहार और पूजा के नियम

पितृपक्ष के दौरान आहार और आचरण का विशेष ध्यान रखना चाहिए.

क्या करें:

  • केवल एक समय सात्विक भोजन करें.
  • पूर्वजों के चित्र पर हल्के सुगंध वाले सफेद फूल अर्पित करें.
  • घर में दीपक जलाएं और भगवद् गीता का पाठ करें.

क्या न करें:

  • प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा का सेवन वर्जित है.
  • दूध का उपयोग कम से कम करें.
  • तामसिक भोजन और अपवित्र कार्यों से बचें.

पितृपक्ष का समापन और पितृ विसर्जन अमावस्या
पितृपक्ष का समापन पितृ विसर्जन अमावस्या के दिन होता है. इस दिन विशेष पूजा, तर्पण और दान-पुण्य का आयोजन किया जाता है. मान्यता है कि इस दिन किए गए दान से पितरों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.

पितृपक्ष का आध्यात्मिक संदेश
हिंदू परंपरा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि हम उन लोगों का आभार व्यक्त करते हैं, जिनकी वजह से हमारा जन्म हुआ, जिनके कारण हमें जीवन मिला. पितृपक्ष हमें यह सिखाता है कि अपने पूर्वजों का सम्मान करना, उनकी स्मृति में तर्पण करना और श्राद्ध करना केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी है.

पितृपक्ष पूर्वजों की स्मृति में आभार व्यक्त करने, श्राद्ध, तर्पण और दान का पर्व है. इस समय की गई पूजा और दान-पुण्य से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है.

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