chhath puja 2025
chhath puja 2025 शनिवार से लोक आस्था के महापर्व की शुरुआत हो जाएगी. चार दिन तक चलने वाला यह महापर्व मंगलवार को उदयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न होगा. छठ के इस महापर्व की तैयारी जोरों-शोरों से शुरू हो गई है. एक तरफ जहां व्रत करने वाली महिलाएं अपने घरों में प्रसाद बनाने की तैयारी में जुट गई हैं. वहीं दूसरी तरफ घाटों की साफ सफाई भी अंतिम चरण में है. इसके साथ ही छठ पूजा को लेकर बाजार में भी रौनक बढ़ गई है और लोग पूजा सामग्रियों की खरीदारी करने में जुट गए हैं.
घरों में छठ की तैयारियां शुरू
घरों में छठी मैया के गीत गाए जा रहे हैं. इसी के साथ-साथ प्रसाद बनाने के लिए गेहूं की साफ सफाई भी हो रही है. यह पर्व चार दिनों तक चलेगा और इसकी शुरुआत शनिवार को नहाय खाए के साथ होगी. अगले दिन रविवार को खरना होगा और रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाएगा. इसके बाद सोमवार की सुबह उदयमान सूर्य को अर्घ देने के साथ ही चार दिनों तक चलने वाला यह महापर्व संपन्न हो जाएगा.
दरअसल छठ पूजा का महापर्व काफी महत्वपूर्ण माना जाता है और इसमें साफ सफाई और पवित्रता का भी विशेष ध्यान रखा जाता है. बताया जाता है कि यह काफी महत्वपूर्ण पर्व है जिसमें निर्जला व्रत रखा जाता है. इस व्रत की महिमा के बारे में हमने पंडित रुपेश मिश्रा से बातचीत की और उनसे यह जाना कि इस व्रत की महिमा क्या है साथ ही साथ अस्ताचलगामी सूर्य और उदयमान सूर्य को अर्घ क्यों दिया जाता है और इस व्रत में विशेष रूप से पवित्रता को लेकर किस तरह से सावधानी बरतनी चाहिए.
क्यों दिया जाता है अस्ताचलगामी और उदयमान सूर्य को अर्घ
छठ का व्रत मुख्य रूप से सूर्य देव और छठी मैया की आराधना के लिए किया जाता है और स्वास्थ्य, समृद्धि, सुख-शांति व परिवार की एकता के लिए विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है. सूर्य देव की किरणों में जीवनदायिनी ऊर्जा होती है, इसलिए अर्घ्य देने से शरीर और मन को ऊर्जा मिलती है और मानसिक शांति प्राप्त होती है. छठ पूजा में सूर्य देवता का विशेष महत्व है.
पवित्रता को लेकर किस तरह से सावधानी बरतनी चाहिए?
पूजा स्थल, कपड़े और बर्तन हमेशा स्वच्छ और शुद्ध होने चाहिए. शरीर और मन को भी शुद्ध रखना आवश्यक है. झूठ बोलना, झगड़ा करना या अनैतिक व्यवहार वर्जित होता है. साथ ही, व्रत के दौरान केवल शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए और नॉन-वेज या मादक पदार्थों से बचना चाहिए. अर्घ्य देते समय नदी, तालाब या अन्य जल स्रोत का स्वच्छ होना भी जरूरी है. इस प्रकार छठ व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि आत्मशुद्धि, संयम और प्रकृति के सम्मान का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है.