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राजगढ़ में स्थित भगवान नरसिंह का वो अनोखा मंदिर,जिसकी प्राण प्रतिष्ठा करते ही निकल गए थे मूर्तिकार के प्राण

जानकारी के अनुसार सन् 1681 में पाटन रियासत के विभाजन के बाद नरसिंहगढ़ और राजगढ़ दो रियासतें अस्तित्व में आईं थी जो कि मूल रूप से 2 सगे भाइयों की थीं. बड़े भाई को राजगढ़ और छोटे भाई का नरसिंहगढ़ रियासते मिलीं.

Rajgarh Temple Rajgarh Temple
हाइलाइट्स
  • कुलदेवता को समर्पित करते हुए किया था नगर का निर्माण

  • मध्य प्रदेश के राजगढ़ में स्थित है भगवान का अनोखा मंदिर

मध्य प्रदेश राजगढ़ जिले के नरसिंहगढ़ का नाम भगवान नरसिंह के नाम से रखा गया था. यहां पर सन 1681 में भगवान नरसिंह की करीब पौने तीन क्विंटल वजनी 280 किलो की अष्टधातु की स्थापना राजा परशुराम ने उस समय करवाई थी. मंदिर में स्थापति नेपाली शैली की 280 किलो वजनी नृसिंह की प्रतिमा का जो शिल्प है वह पूरे देश में दुर्लभ है. भगवान नरसिंह की गोद में पड़े हुए राक्षस हिरण्यकश्यप का चेहरा राक्षस का न होकर हिरण का था, जो अपने आप में बेहद दुर्लभ उदाहरण है. प्राचीन चित्रों और प्रतिमाओं में ऐसा उल्लेख कहीं पर भी देखने को नहीं मिलता है. जानकारों का मानना है कि संभवत: इसका कोई तंत्रात्मक महत्व हो सकता है, क्योंकि प्रतिमा को नेपाली मूर्तिकार ने बनाया था और नेपाल की रहस्यमय तंत्र परंपरा पूरे विश्व में अनोखी मानी जाती रही है.

दुर्लभ व तंत्र की बात सभी करते हैं और इस प्रतिमा के बारें में मंदिर की प्रबंधक वयोवृद्ध दुर्गा देवी बैरागी इससे जुड़ी एक रोचक बात बताती हैं. उनका कहना है कि उन्होंने अपने पति और ससुर से सुना था कि मंदिर की प्रतिमा बेहद जागृत है और इसका निर्माण करते समय सभी वैदिक नियमों का पालन किया गया था. यह इतना खास था कि जैसे ही इधर मंदिर में प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के बाद पहली आरती की गई उधर नेपाल में मूर्तिकार का निधन हो गया था. नगर के नरसिंह मंदिर में स्थापित भगवान नरसिंह की प्रतिमा आस्था का विषय होने के साथ-साथ अपने शिल्प की विशिष्टताओं की वजह से स्थानीय लोगों के लिए गर्व का विषय भी है.

कुलदेवता को समर्पित करते हुए किया था नगर का निर्माण
जानकारी के अनुसार सन् 1681 में पाटन रियासत के विभाजन के बाद नरसिंहगढ़ और राजगढ़ दो रियासतें अस्तित्व में आईं थी जो कि मूल रूप से 2 सगे भाइयों की थीं. बड़े भाई को राजगढ़ और छोटे भाई का नरसिंहगढ़ रियासते मिलीं. इसलिए दोनों रियासतों की परंपराएं एक ही परिवार से ही संचालित होती थी. नरसिंहगढ़ के संस्थापक महाराज परशुराम ने अपनी रियासत को अपने कुलदेवता और आराध्य भगवान नृसिंह को समर्पित करते हुए नरसिंहगढ़ नगर बसाया था. 

नाखूनों से राक्षस हिरणकश्यप का वध कर रहे हैं भगवान नरसिंह
जो प्रतिमा भगवान नरसिंह मंदिर में स्थापित है उस प्रतिमा की शैली में नेपाली शिल्प की झलक दिखाई देती है. करीब ढाई फिट ऊंची प्रतिमा का वजन 280 किग्रा है. इसमें भगवान नरसिंह उग्र स्वरूप में हिरण्यकश्यप दैत्य का अपने तेज नाखूनों से वध कर रहे हैं और उनके दोनों ओर भक्त प्रह्लाद और उनकी मां कयादू हाथ जोड़े खड़ी हैं. पीछे 2 भागों में फटा हुआ खंभा दिखाई दे रहा है. विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के दशावतारों में भगवान नरसिंह चौथा अवतार बताया गया है. उन्होंने धर्म की स्थापना के लिए अपने भक्त प्रह्लाद की पुकार पर खंभा फाड़कर दर्शन देते हुए भक्त प्रह्लाद के अत्याचारी और अधर्मी पिता हिरण्यकश्यप का वध किया था.

(पंकज शर्मा की रिपोर्ट)