
पश्चिमी मध्यप्रदेश, खासकर मालवा क्षेत्र में इन दिनों पारंपरिक संजा बाई का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. यह त्योहार अविवाहित लड़कियां अच्छे वर और सुखी जीवन की कामना के साथ पूरे उत्साह से मनाती हैं.
गोबर से बनती है संजा की आकृति
लड़कियां दीवारों पर गोबर से किला नुमा आकृति बनाती हैं, जिसे कोट किला कहा जाता है. इसी किले को संजा का रूप माना जाता है. इसमें चांद, सूरज, त्रिशूल और अन्य धार्मिक प्रतीक बनाए जाते हैं. आकृति को फूलों की पंखुड़ियों, अबीर, गुलाल और हल्दी के रंगों से सजाया जाता है.
लोकगीतों और आरती से सजता माहौल
शाम होते ही लड़कियां संजा के पास इकट्ठा होकर लोकगीत गाती हैं. गीतों के साथ तालियों की मधुर ध्वनि पूरे माहौल को खुशनुमा बना देती है. पूजा के बाद आरती की जाती है, जिसका अपना अलग गीत होता है. आरती के बाद प्रसाद का वितरण होता है.
16 दिन तक चलता है उत्सव
संजा पर्व हिंदी माह क्वार की पूर्णिमा से अमावस्या तक लगातार 16 दिन तक चलता है. इस दौरान हर रोज पूजा, गीत और आरती की परंपरा निभाई जाती है. ग्रामीण इलाकों में अब भी गोबर से संजा बनाने की परंपरा कायम है, जबकि शहरों में पोस्टरों का चलन बढ़ गया है.
संजा के अवसर पर गाए जाने वाले मालवी लोकगीत न केवल धार्मिक वातावरण रचते हैं, बल्कि समाज में आपसी मेल-जोल और भाईचारे की मिसाल भी पेश करते हैं. अलग-अलग गीत संजा बनाने, पूजा और आरती के दौरान गाए जाते हैं, जो इस पर्व को और भी खास बना देते हैं. संजा पर्व आज भी मालवा क्षेत्र की संस्कृति, परंपरा और आस्था का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है.
(प्रमोद कारपेंटर की रिपोर्ट)
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