
भगवान विष्णु का चरित्र ही सत्यनारायण की कथा है. इस कथा के पांच अध्यायों को तीन दिनों में सुनने का महत्व बताया गया है. यह कथा भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप को दर्शाती है और इसे सुनने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है. कथा के दौरान भगवान विष्णु की स्तुति की जाती है और उनके सत्य स्वरूप का ध्यान किया जाता है.
कलयुग में सरल व्रत
कलयुग में मनुष्यों के पास समय की कमी होती है और वे पूजा-पाठ के लिए समय नहीं निकाल पाते. ऐसे में सत्यनारायण व्रत एक सरल उपाय है, जो कम समय में भी मनोकामनाओं की पूर्ति कर सकता है. इस व्रत को करने से व्यक्ति को संसार के सभी सुख प्राप्त होते हैं और परलोक में मोक्ष की प्राप्ति होती है.
भगवान विष्णु ने बताया था इस व्रत का महत्व
सत्यनारायण व्रत का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है. भगवान विष्णु ने नारद मुनि को इस व्रत का महत्व बताया था. श्रीहरि ने बताया कि सत्यनारायण व्रत दुख, शोक और बंधन से मुक्ति दिलाने वाला है.
यह व्रत धन-धान्य की वृद्धि करता है और संतानहीनों को संतान प्रदान करता है. सत्यनारायण व्रत का पालन करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. यह व्रत कलयुग में सबसे सरल, प्रचलित और प्रभावशाली पूजा मानी गई है. ज्योतिष के अनुसार सत्यनारायण व्रत कथा के दो भाग व्रत पूजन और सत्यनारायण की कथा होते हैं.
श्रीहरि की स्तुति
सत्यनारायण कथा के दौरान भगवान विष्णु की स्तुति की जाती है और उनके अनंत स्वरूप का ध्यान किया जाता है. भगवान विष्णु के शुक्ल वर्ण और चार भुजाओं वाले स्वरूप का वर्णन किया गया है. नारद मुनि ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की थी कि वे कलियुग के मनुष्यों के दुखों का निवारण करें.
सत्यनारायण व्रत का विधान
सत्यनारायण व्रत का विधान सरल है और इसे किसी भी दिन भक्ति और श्रद्धा के साथ किया जा सकता है. सत्यनारायण व्रत की पूजा विधि में सबसे पहले भगवान विष्णु, भगवान शिव और भगवान गणेश की पूजा की जाती है. इसके बाद एक विद्वान को बुलाकर पूजा का आयोजन किया जाता है. परिवार के सभी सदस्य, रिश्तेदार और मेहमान मिलकर सत्यनारायण भगवान की कथा सुनते हैं. कथा के बाद हवन और प्रसाद वितरण होता है.