हाइलाइट्स
कलावा को रक्षा सूत्र भी कहा जाता है
हर पूजा पाठ के बाद बांधा जाता है कलावा
हिन्दू धर्म में कलावा पहनना शुभ माना जाता है
सनातन धर्म में पूजा-पाठ के दौरान मौली या कलावा बांधा जाता है. हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों में कलावा बांधने की परंपरा बेहद प्राचीन है. इसे रक्षा सूत्र भी कहा जाता है. कलावा को आम तौर पर लाल, पीले और हरे रंग के धागों से बनाया जाता है. इसे दाएं हाथ की कलाई में बांधा जाता है. यह परंपरा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से जरूरी है बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक कारण और आध्यात्मिक महत्व भी जुड़ा हुआ है. बेहद कम लोगों को पता है कि पूजा के बाद हाथ में कलावा क्यों बांधा जाता है? आइए इस बारे में जानते हैं.
हिंदू धर्मग्रंथों में कलावा को रक्षा सूत्र कहा गया है. इसका अर्थ है, ऐसा धागा जो हमें नकारात्मक शक्तियों, बुरी नजर और अनहोनी से बचाता है. पूजा के बाद कलावा बांधते समय विशेष मंत्र का जाप किया जाता है. यह मंत्र देवताओं को साक्षी मानकर सुरक्षा का आह्वान करता है. कलावा आमतौर पर तीन रंगों के धागों से बनाया जाता है. हर रंग का अपना अलग प्रतीकात्मक महत्व होता है. लाल रंग शक्ति, साहस और ऊर्जा का प्रतीक होता है. पीला रंग समृद्धि, ज्ञान और सकारात्मकता का प्रतीक है. हरा रंग शांति, संतुलन और सौहार्द्र का प्रतीक है. ये तीनों रंग मिलकर जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने का कार्य करते हैं.
क्या है कलावा की मान्यता?
कलावा को रक्षा सूत्र भी कहा जाता है. यह न सिर्फ एक धार्मिक धागा है बल्कि सुरक्षा, विश्वास और शक्ति का प्रतीक है. इसके पीछे एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा है जो देवता और असुरों के युद्ध से जुड़ी है.
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- प्राचीन समय में देवता और असुरों के बीच भीषण युद्ध हुआ. इस जंग में देवताओं के राजा इंद्र हार रहे थे. असुरों की शक्ति इतनी बढ़ गई थी कि देवताओं का हार पक्की लग रही थी.
- इंद्र अपनी चिंता को लेकर देवगुरु बृहस्पति के पास गए और मदद मांगी. बृहस्पति ने इंद्र को सलाह दी कि श्रावण पूर्णिमा के दिन एक पवित्र यज्ञ किया जाए.
- इस यज्ञ के दौरान मंत्रोच्चारण करके एक विशेष धागा तैयार किया गया जिसे आज कलावा या रक्षा सूत्र कहा जाता है.
- श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्राणी ने मंत्रों के साथ इंद्र की दाहिनी कलाई पर वह धागा बांधा. उनके कल्याण, विजय और सुरक्षा की प्रार्थना की.
- इस पवित्र रक्षा सूत्र की शक्ति से इंद्र को युद्ध में असीम शक्ति मिली. इसके बाद इंद्र ने असुरों को हराकर देवताओं की जीत पक्की की.
- इस घटना के बाद से यह परंपरा शुरू हुई कि कलाई पर रक्षा सूत्र बांधने से व्यक्ति को सुरक्षा और विजय मिलती है. तभी से इसे कलावा, मौली या रक्षा सूत्र कहा जाने लगा.
- देवताओं के युद्ध में यह कलावा आध्यात्मिक कवच का काम करता था. आज कल इसे पूजा, हवन, विवाह, व्रत और धार्मिक अवसरों पर बांधा जाता है.
किस हाथ में बांधना चाहिए कलावा?
- हाथ में कलावा बांधने के कुछ नियम हैं. पुरुषों और अविवाहित लड़कों को कलावा दाएं हाथ की कलाई में बांधना चाहिए.
- महिलाओं और विवाहित महिलाओं को कलावा बाएं हाथ की कलाई में बांधना चाहिए. दाहिना हाथ कर्म का प्रतीक माना जाता है जबकि बायां हाथ संवेदनाओं और सौम्यता का प्रतीक है.
- कलावा बांधने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं. नाड़ी विज्ञान के अनुसार, कलाई में कई महत्वपूर्ण नसें होती हैं. जब कलावा बांधा जाता है तो यह नसों पर हल्का दबाव डालता है.
- हाथ में कलावा बांधने से ब्लड सर्कुलर बेहतर होता है. पूजा के समय कलावा पर मंत्रों का उच्चारण होने से सकारात्मक ऊर्जा निकलती है.
- कलावा नकारात्मक विचारों और मानसिक तनाव को दूर करने में मदद करता है. साथ ही लाल और पीले रंग का वाइब्रेशन शरीर में सकारात्मक ऊर्जा निकलती है.
किन बातों का रखें ध्यान?
- कलावा हमेशा पूजा या धार्मिक कार्य के बाद ही बांधना चाहिए. इसे बांधते समय रक्षा मंत्र का उच्चारण करना चाहिए.
- कलावा को साफ-सुथरे हाथों से बांधें और इसे सम्मानपूर्वक रखें. यदि कलावा गलती से टूट जाए, बहुत पुराना हो जाए तो इसे बहते पानी में प्रवाहित करें किसी पवित्र स्थान पर रखें.
- हिन्दू धर्म के अनुसार, कलावा सुरक्षा कवच का काम करता है. यह बुरी नजर, नकारात्मक ऊर्जा और दुष्ट शक्तियों से बचाता है. साथ ही सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाता है.
- मंत्रों के प्रभाव से कलावा पहनने वाले व्यक्ति में आत्मविश्वास और सकारात्मकता बढ़ती है. यह परिवार में सुख-शांति बनाए रखने में मदद करता है.
- कलाई में कलावा बांधने से मानसिक शांति मिलती है. साथ ही रक्त संचार बेहतर होता है. पूजा-पाठ के बाद कलावा हाथ में जरूर बांधना चाहिए.
- कलावा को कभी भी गंदे हाथों से नहीं बांधना चाहिए. इसे बांधते समय शराब या मीट नहीं खाना चाहिए. यदि कलावा खराब हो जाए तो उसे पहनना अशुभ माना जाता है.
कलावा बांधने की परंपरा सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है. यह एक सुरक्षा कवच है जो व्यक्ति को नकारात्मक शक्तियों से बचाता है. पूजा के बाद कलावा बांधना यह दर्शाता है कि व्यक्ति ने भगवान की शरण में रहकर अपने जीवन की रक्षा का संकल्प लिया है. इसके रंग, मंत्र और ऊर्जा मिलकर जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार करते हैं. जब भी आप किसी पूजा, हवन या धार्मिक कार्य में शामिल हों तो कलावा जरूर बांधें. कलावा को श्रद्धा और आस्था के साथ पहनें.