
आदि जगत गुरु शंकराचार्य जी की तपस्थली ज्योतिर्मठ में मंगलवार को 500 किलो वजन का और 4 फीट ऊंचा स्फटिक मणि श्री यंत्र को विराजमान किया गया है. दुनिया का सबसे बड़ा स्फटिक श्री मणि रत्नम यंत्र जोशीमठ के ज्योर्तिमठ में स्थापित हो गया है.
द्वारिका शारदा पीठ और ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद महाराज के शिष्य स्वामी अभिमुकेश्वेरानंद महाराज ने बताया कि यह दुनिया का सबसे बड़ा स्फटिक श्री मणि रत्नम यंत्र है. यह चार फुट बड़ा और 500 किलो वजन का है.
उन्होंने कहा कि इस स्फटिक श्री मणि यंत्र में सभी की मनोकामना पूरी करने की क्षमता है. यह दुनिया का दुर्लभतम स्फटिक श्री मणि यंत्र है. इसको खोजने में पूरे 3 साल लगे हैं और विश्व कल्याण के लिए यहां स्थापित किया गया है.
हर धातु के श्रीयंत्र का अलग-अलग महत्व
जोशीमठ बद्रीनाथ धाम का मुख्य पड़ाव आदि जगत गुरु शंकराचार्य जी की तपस्थली है. यही से आदि जगत गुरु शंकराचार्य ने चारधाम की स्थापना का कार्य शुरू किया था और जोशीमठ का पौराणिक नाम ज्योतिर्मठ था. यहां आदि जगतगुरु शंकराचार्य जी की तपस्थली, अमर कल्प वृक्ष और शंकराचार्य जी का मठ .
यहां पर राज राजेस्वरी की मूर्ति के आगे श्रीयंत्र विराजमान किया गया है. हिन्दू मान्यताओं अनुसार कहा जाता है कि हर धातु पर श्री यंत्र मनोकामना अनुसार बनाये जाते हैं. हर धातु के श्रीयंत्र का अलग-अलग महत्व होता है. हर धातु के साथ श्री यंत्र का महत्व बदल जाता है लेकिन स्फटिक श्रीयंत्र का अपने आप में विशेष महत्व होता है.
नवरात्र में होगा 1000 कन्याओं को पूजन
यह सभी से महत्वपूर्ण है और सभी विघ्न-बाधाओं को आप से दूर करता है. आदि जगतगुरु शंकराचार्य जी की तपस्थली ज्योतिर्मठ में अब यह स्फटिक श्री यंत्र पहुंच चुका है. चैत्र नवरात्र पर्व पर ज्योतिर्मठ मे विशेष पूजन आयोजित होंगें. इस दौरान एक हजार कन्याओं का पूजन उत्सव भी होगा. आगामी वैसाखी पर्व से "चमोली मंगलम"अभियान की शुरुआत होगी.
बताया जाता है कि भगवान शंकर के 11वें अवतार आदि गुरु शंकराचार्य ने केरल के कालड़ी गांव से आकर अमर कल्प वृक्ष के नीचे 5 साल घोर तप किया और यहीं पर उन्हें दिव्य ज्ञान ज्योति के दर्शन हुए थे. उन्होंने लुप्त हो रहे सनातन धर्म की रक्षा की और बदरीनाथ धाम में भगवान बदरीनाथ की मूर्ति नारद कुंड से निकाल कर पुनः स्थापित की थी.
साथ ही भारत को एकता के सूत्र में बांधने के लिए भारत के चार कोनो में चार पीठ की स्थापना की. इसी के नाम से इस पवित्र पीठ का नाम ज्योतिषपीठ पड़ा. यही पर दुनिया का सबसे पुराना मतलब 2500 साल पुराना शहतूत का पेड़ अमर कल्प वृक्ष है. इसी वृक्ष के नीचे आदि गुरु शंकराचार्य ने दर्जनों धार्मिक ग्रन्थों की रचना की.
(कमल नयन सिलोरी की रिपोर्ट)