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Deepdan: जीवन के अंधकार दूर करने का वैदिक विधान और मंत्र

सनातन संस्कृति में हर शुभ कार्य से पहले मंत्रोच्चारण का विधान है. धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, दीपक का दान करना या देवस्थान पर दीपक जलाना दीपदान कहलाता है. पंतपुराण और अग्निपुराण में दीपदान का महत्व बताया गया है. अग्निपुराण के अनुसार, जो मनुष्य देव मंदिर या ब्राह्मण के घर में दीपदान करता है, वह सब कुछ प्राप्त कर सकता है. पद्मपुराण के मुताबिक, मंदिरों और नदी किनारे दीपदान से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं. भूमि पर दीपदान से व्यक्ति नरक जाने से बचता है. दीपदान से अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता. मृतकों की सद्गति और देवी लक्ष्मी व भगवान विष्णु की कृपा के लिए भी दीपदान किया जाता है. यम, शनि, राहु और केतु के बुरे प्रभाव से बचने के लिए भी दीपदान का विधान है. कार्तिक मास, दीपावली, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन दीपदान का विशेष महत्व है. दीपक जलाते समय 'दीपों ज्योति परंब्रह्मा दीपों ज्योतिर्जनार्धन. दीपो हरित मा पाप संध्यादीप नमोस्तुते' जैसे मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए. यदि वैदिक मंत्र बड़ा लगे, तो 'ओम नमः शिवाय दीपांकरशामी' या 'ओम विष्णुव नमः दीपमदर्शयामी' जैसे सरल मंत्रों का प्रयोग भी उतना ही लाभ देता है. शास्त्रीय विधान से दीपदान करने से पुण्य कर्मों में बढ़ोतरी होती है और सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं.