पितृपक्ष में पूर्वजों की सेवा करने से विधाता प्रसन्न होते हैं. इस दौरान गीता पाठ को महाफलदाई माना जाता है. गीता के अलग-अलग अध्याय पितरों को भवसागर से पार कराकर पितृ ऋण से मुक्ति का मार्ग बताते हैं. गीता पाठ से घर के संकटों का समाधान हो सकता है और पितरों की कृपा प्राप्त होती है. मान्यता है कि गीता के सातवें अध्याय के पाठ से पूर्वज आशीर्वाद देते हैं. इसके अलावा, नौवें और बारहवें अध्याय का पाठ भी पितरों की मुक्ति के लिए लाभकारी है. जिन घरों में किसी के देहांत से नकारात्मक ऊर्जा आ गई हो, उन्हें अट्ठारहवें अध्याय का पाठ करना चाहिए. कुंडली के ऋण और पितृ दोष से मुक्ति के लिए हर गुरुवार गीता के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करने का विधान है. पितरों की तृप्ति भोजन, अन्न और जल से होती है. तर्पण में तिल मिले जल का महत्व है. कहा गया है कि "यदि जल में तिल न डालें। केवल जल दे दें तो एक प्राण कहता है कि बिना तिल का जल राक्षसों को चला जाएगा. प्रेतों को चला जायेगा. असुर योनियों में पड़े हुए लोगों को चला जायेगा, यदि तिल डालेंगे तो उस पर पितरों का अधिकार हो जायेगा" पितरों की मुक्ति और तृप्ति के लिए गीता पाठ एक सरल समाधान है, जिसके साथ पूर्ण सांत्विकता और श्रद्धा आवश्यक है.