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कृष्णस्तु भगवान स्वयं: जानें उनकी लीलाओं का आध्यात्मिक रहस्य, देखिए

भागवत पुराण में वेद व्यास जी ने लिखा है कि कृष्ण अवतार नहीं बल्कि स्वयं परमेश्वर हैं. गीता के अनुसार, भगवान कृष्ण धर्म की प्रतिष्ठा, साधुओं के कल्याण और पापियों का नाश करने के लिए युगों-युगों में प्रकट होते हैं. कंस के कारागार में उनका प्राकट्य निराशा के अंधियारे में दिव्य प्रकाश का संदेश देता है. यह दर्शाता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी सच्चे मन से याद करने पर भगवान प्रकट होते हैं और कष्ट दूर करते हैं. भगवान कृष्ण की चोरी की लीला का गूढ़ रहस्य यह है कि वे अपने शरणागत के कई जन्मों के संचित पाप, ताप और संताप को चुरा लेते हैं. उनकी लीलाएं मनुष्य को अहंकार, मनोविकारों और तामसिक प्रवृत्तियों पर विजय पाने का मार्ग दिखाती हैं। वृंदावन की लीलाएं उच्चतम मनोभूमि प्राप्त करने का संकेत देती हैं। गोवर्धन धारण करना इंद्रियों को ऊपर उठाने का प्रतीक है। कृष्ण को लीला पुरुषोत्तम कहा गया है क्योंकि उन्होंने अपनी लीलाओं के माध्यम से निष्काम कर्म, प्रेम, राजनीति और लोक व्यवहार के उच्चतम मानदंड स्थापित किए। उनकी लीलाएं जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करती हैं।