यह प्रवचन राम के चरित्र से मिली आठवीं शिक्षा पर केंद्रित है, जिसमें माता-पिता के प्रति आज्ञाकारिता और सम्मान का महत्व बताया गया है. भगवान राम ने सौतेली माता कैकई के कहने पर बिना विचार किए 14 वर्ष का वनवास स्वीकार किया, जो माता-पिता की आज्ञा मानने का सर्वोच्च उदाहरण है. उन्होंने जोर दिया कि माता-पिता का घर धर्मशाला नहीं है और जो संतान उन्हें दुखी करके अपना जीवन बनाती है, वह कभी सुखी नहीं रहती. प्रवचन में कहा गया कि माता-पिता परमात्मा के समान हैं और उन्हें धरती का भगवान मानना चाहिए.