पांचवें अध्याय में राजा तुंगध्वज की कथा है, जिसने सत्यनारायण भगवान के प्रसाद का तिरस्कार कर दुःख पाया. कथा में बताया गया कि "सत्य ही नारायण है", और व्रत करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है व भय से मुक्ति मिलती है. विभिन्न पात्रों के पूर्व जन्मों और द्वारकाधीश की भक्ति का भी वर्णन है.