शिवधनुष भंग होने की घटना के उपरांत परशुराम क्रोधित होकर जनक की सभा में पहुंचे और धनुष तोड़ने वाले के विषय में पूछा, जिससे उपस्थित सभी राजा भयभीत हो गए. श्रीराम ने स्थिति को शांत करने का प्रयास करते हुए कहा, 'नाथ संभुधनु भंजनिहारा, होइहि केउ एक दास तुम्हारा,' यह दर्शाते हुए कि धनुष तोड़ने वाला शिवजी का कोई दास ही होगा. इस पर भी परशुराम का क्रोध शांत नहीं हुआ और लक्ष्मण के साथ उनका लंबा तर्क-वितर्क चला, जिसमें लक्ष्मण ने अपने बाल्यकाल में अनेक धनुष तोड़ने की बात कही, अंततः श्रीराम के विनयपूर्ण वचनों और उनके दिव्य रूप के दर्शन से परशुराम शांत हुए.