

क्या आपने कभी सुना है कि कोई बच्चा सिर्फ आधे दिल के साथ जिंदगी की जंग लड़ रहा हो? हरियाणा के एक छोटे से गांव का 6 साल का आयांश ऐसी ही जिंदगी जी रहा था, लेकिन डॉक्टरों ने एक अनोखे और बिना चीरा लगाए ऑपरेशन से उसकी जिंदगी बदल दी! जन्म से ही आयांश का दिल इतना कमजोर था कि वह न तो खेल सकता था, न दौड़ सकता था. उसके होंठ और उंगलियां नीली पड़ जाती थीं, क्योंकि उसके खून में ऑक्सीजन की भयंकर कमी थी.
आयांश का आधा दिल, आधी सांसें
आयांश का जन्म एक ऐसी बीमारी के साथ हुआ, जो 1% बच्चों को भी नहीं होती- सिंगल वेंट्रिकल फिजियोलॉजी. सामान्य दिल में चार हिस्से होते हैं, जो शुद्ध और अशुद्ध खून को शरीर और फेफड़ों तक पहुंचाते हैं. लेकिन आयांश के दिल का दायां हिस्सा, जो फेफड़ों तक खून भेजता है, पूरी तरह गायब था. नतीजा? उसके शरीर में शुद्ध और अशुद्ध खून मिल रहा था, जिससे ऑक्सीजन की कमी हो रही थी. वह थोड़ा सा चलने पर भी हांफने लगता था, और उसकी त्वचा नीली पड़ जाती थी.
हरियाणा के एक सुदूर गांव में रहने वाले आयांश के परिवार को शुरू में उसकी बीमारी का पता ही नहीं था. ग्रामीण इलाकों में ऐसी जटिल बीमारियों का निदान मुश्किल होता है. लेकिन किस्मत से आयांश की बीमारी का पता शुरुआत में ही चल गया. 6 महीने की उम्र में उसका पहला ऑपरेशन- ग्लेन प्रोसीजर हुआ, जिसमें ऊपरी शरीर का खून सीधे फेफड़ों तक भेजा गया. लेकिन असली चुनौती थी फॉन्टेन प्रोसीजर, जो आमतौर पर खुली छाती के साथ जोखिम भरे ऑपरेशन से होता है.
बिना चीरा, नया जीवन
BLK-Max हॉस्पिटल के पेडियाट्रिक कार्डियोलॉजी के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. गौरव गर्ग की अगुआई में डॉक्टरों की टीम ने आयांश की जिंदगी को नया मोड़ दिया. उन्होंने ट्रांसकैथेटर फॉन्टेन प्रोसीजर किया- एक ऐसा ऑपरेशन, जो भारत में पहली बार इतने छोटे बच्चे पर किया गया. इस प्रक्रिया में छाती को चीरने की बजाय, जांघ में छोटा सा चीरा लगाकर कैथेटर और तारों की मदद से दिल तक पहुंचा गया. वहां एक कवर्ड स्टेंट लगाया गया, जो खून के फ्लो को ठीक करता है.
डॉ. गर्ग ने बताया, “जब आयांश हमारे पास आया, उसकी ऑक्सीजन लेवल 70-75% थी, जो बहुत खतरनाक था. पारंपरिक फॉन्टेन सर्जरी में छाती खोलनी पड़ती, जिसमें खून बहने, इन्फेक्शन, और लंबे अस्पताल में रहने का जोखिम था. हमने ट्रांसकैथेटर फॉन्टेन चुना, जो कम जोखिम वाला और तेज रिकवरी देने वाला है.”
यह ऑपरेशन इतना जटिल था कि इसे करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक और विशेषज्ञता चाहिए थी. लेकिन BLK-Max की टीम ने इसे बखूबी अंजाम दिया. ऑपरेशन के कुछ ही दिनों बाद आयांश के ऑक्सीजन लेवल बढ़ने लगे, और उसकी त्वचा का नीला रंग धीरे-धीरे गायब होने लगा.
आयांश का नया सपना
आयांश की कहानी सिर्फ एक मेडिकल सफलता नहीं, बल्कि उम्मीद की किरण है. जहां वह पहले थोड़ा सा चलने पर थक जाता था, अब वह स्कूल जाने और दोस्तों के साथ खेलने का सपना देख रहा है. उसके माता-पिता की आंखों में खुशी के आंसू हैं. वे कहते हैं, “हमने सोचा था कि हमारा बेटा शायद कभी नॉर्मल जिंदगी न जी सके. लेकिन BLK-Max के डॉक्टरों ने उसे नया जीवन दिया.”
डॉ. गर्ग ने बताया कि ऐसी जन्मजात दिल की बीमारियां अक्सर ग्रामीण इलाकों में देर से पकड़ में आती हैं. “आयांश का केस इसलिए कामयाब हुआ, क्योंकि उसका निदान समय पर हो गया. ऐसी बीमारियों के कारण पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन कुछ मामलों में जेनेटिक फैक्टर जिम्मेदार हो सकते हैं.”
दुनियाभर में हर 100 नवजात में से 1 को दिल की जन्मजात बीमारी होती है, लेकिन आयांश जैसे केस बेहद दुर्लभ हैं. डॉक्टरों ने इस मिनिमली इनवेसिव तकनीक से न सिर्फ आयांश की जिंदगी बचाई, बल्कि भारत में बच्चों के हृदय रोगों के इलाज में नया बेंचमार्क सेट किया.