
IIT-रुड़की, अमृता विश्वविद्यालय (कोयंबटूर) और स्वीडन के उप्साला विश्वविद्यालय के शोध में पता चला कि 1350 ईस्वी से पहले बने आठ प्रमुख शिव मंदिर ऐसे इलाकों में हैं, जहां जल, ऊर्जा और खेती की बेहतरीन संभावनाएं थीं. ये मंदिर हैं- केदारनाथ (उत्तराखंड), कलेश्वरम (तेलंगाना), श्रीशैलम (आंध्र प्रदेश), कलवियूर, रामेश्वरम, चिदंबरम, कांचीपुरम और तिरुवन्नामलई (तमिलनाडु).
शिव शक्ति अक्ष रेखा (SSAR)
ये मंदिर जहां स्थित हैं उसे शिव शक्ति अक्ष रेखा कहा जाता है. यहां रिसर्च में पाया गया कि SSAR पट्टी के 18.5% क्षेत्र में हर साल 44 मिलियन टन चावल उगाया जा सकता है. यही क्षेत्र लगभग 597 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा पैदा कर सकता है.
GIS और रिमोट सेंसिंग से स्टडी
रिसर्चर्स ने GIS और रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग किया. उन्होंने मंदिरों के आस-पास भूमि का स्वरूप, वर्षा, जंगल, मिट्टी और कृषि डेटा का विश्लेषण किया. शोध में पाया गया कि पहले इन क्षेत्रों में जंगल आज से 2.4 गुना ज्यादा घने थे. इससे मिट्टी अच्छी रहती थी और पर्यावरण संतुलित रहता था. बारिश का पैटर्न समय के साथ थोड़ा बदल गया, लेकिन जगह-जगह कृषि के लिए भरोसेमंद रही.
मंदिरों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
प्रो. के. एस. कासिविस्वनाथन ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि मंदिर सिर्फ धार्मिक या सामाजिक कारणों से नहीं बनाए गए थे. इन्हें जल स्रोत, उपजाऊ जमीन और ऊर्जा क्षमता को ध्यान में रखकर बनाया गया. उन्होंने कहा, “इन मंदिरों की जगहों से हमें हमारे खुद के इतिहास से स्थायी विकास की सीख मिलती है. यह सिर्फ पुरातत्व नहीं है, बल्कि जलवायु और संसाधन सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है.”
आधुनिक भारत के लिए संदेश
स्टडी से पता चला कि मंदिरों की जगह सिर्फ पवित्र नहीं, बल्कि रणनीतिक और पर्यावरण के अनुकूल थी. आईआईटी-रुड़की के निदेशक प्रो. कमल किशोर पंत ने कहना है कि यह दिखाता है कि प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं.”
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