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NASA Alert: धरती के पास से गुजरेगा 110 फीट का उल्कापिंड! आज होगा सबसे करीब, वैज्ञानिकों ने दी जानकारी

30 जुलाई को जब यह उल्कापिंड पृथ्वी के निकटतम बिंदु से गुजरेगा, तब इसकी दूरी पृथ्वी से लगभग 12.9 लाख किलोमीटर होगी. यह दूरी सुनने में कम लग सकती है, लेकिन अंतरिक्षीय गणनाओं में इसे "सुरक्षित दूरी" की श्रेणी में रखा जाता है.

Near-Earth Object Near-Earth Object

30 जुलाई 2025 को धरती एक खास खगोलीय घटना की साक्षी बनने जा रही है. लगभग 110 फीट आकार का एक उल्कापिंड- जिसका नाम Asteroid 2025 OL1 है, पृथ्वी के सबसे नजदीकी बिंदु से गुजरेगा. वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह उल्कापिंड कोई खतरा नहीं है लेकिन इसका अध्ययन खगोल विज्ञान और प्लेनेटरी डिफेंस यानी ग्रह रक्षा के नजरिए से बेहद अहम माना जा रहा है.

कितना बड़ा है यह उल्कापिंड?
इस उल्कापिंड का व्यास लगभग 110 फीट है, यानी यह किसी छोटे विमान के आकार का है. इसे Near-Earth Object (NEO) की श्रेणी में रखा गया है, यानी यह पृथ्वी की कक्षा के पास से गुजरने वाला एक अंतरिक्षीय पिंड है. यह करीब 16,904 मील प्रति घंटे (लगभग 27,200 किमी/घंटा) की रफ्तार से सफर कर रहा है.

कितनी दूरी से गुजरेगा पृथ्वी के पास से?
30 जुलाई को जब यह उल्कापिंड पृथ्वी के निकटतम बिंदु से गुजरेगा, तब इसकी दूरी पृथ्वी से लगभग 12.9 लाख किलोमीटर होगी. यह दूरी सुनने में कम लग सकती है, लेकिन अंतरिक्षीय गणनाओं में इसे "सुरक्षित दूरी" की श्रेणी में रखा जाता है.

NASA की निगरानी में है 2025 OL1
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने इस उल्कापिंड को अपनी निगरानी सूची में रखा है. हालांकि यह वस्तु आकार में 85 मीटर से बड़ी है और 7.4 मिलियन किलोमीटर की सीमा में आने वाले किसी भी उल्कापिंड को Potentially Hazardous Asteroid (PHA) माना जाता है, फिर भी 2025 OL1 फिलहाल कोई खतरा पैदा नहीं कर रहा है. NASA ने साफ कर दिया है कि इसका धरती से टकराने का कोई खतरा नहीं है.

वैज्ञानिकों के लिए क्यों है यह खास?
भले ही यह उल्कापिंड धरती से टकराने वाला नहीं है, लेकिन इसका नजदीक से गुजरना वैज्ञानिकों के लिए अध्ययन का एक बड़ा अवसर होता है. ऐसे पिंडों की गति, आकार, बनावट और कक्षा (orbit) का अध्ययन करना भविष्य में खतरनाक टकराव से निपटने की तैयारी में मदद करता है.

हर बार जब कोई NEO धरती के पास से गुजरता है, वैज्ञानिक उसकी ट्रैजेक्टरी (पथ) को ट्रैक करते हैं. इससे वे भविष्य में उसकी संभावित दिशा का अंदाजा लगा सकते हैं और यह भी देख सकते हैं कि क्या कोई गुरुत्वाकर्षणीय प्रभाव उसकी दिशा में बदलाव ला सकता है.

ISRO भी कर रहा सक्रिय योगदान
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) भी अब ऐसे NEOs की निगरानी में शामिल हो चुका है. ISRO अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने हाल ही में कहा कि भारत को भी ग्रह रक्षा के क्षेत्र में गंभीरता से काम करना होगा. खासकर ऐसे पिंडों को लेकर जो आने वाले वर्षों में पृथ्वी के पास से गुजर सकते हैं, जैसे कि Apophis, जो 2029 में धरती के बेहद पास से गुजरने वाला है.

ISRO, NASA, ESA (European Space Agency) और JAXA (Japan Aerospace Exploration Agency) के साथ मिलकर ऐसे मिशन तैयार कर रहा है जो भविष्य में उल्कापिंडों को डिफलेक्ट करने की तकनीक बनाने में मदद करेंगे.

क्यों जरूरी है आसमान पर नजर?
हालांकि इस तरह की घटनाएं आमतौर पर टल जाती हैं, लेकिन अगर एक भी बड़ा उल्कापिंड पृथ्वी से टकरा जाए, तो उसके परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं. ऐसे में लगातार ट्रैकिंग और अध्ययन हमारी सुरक्षा के लिए अनिवार्य हो जाते हैं.

NASA और अन्य स्पेस एजेंसियां हाई-पावर टेलीस्कोप और सैटेलाइट्स के माध्यम से आसमान पर 24x7 नजर रखती हैं. हर एक पासिंग ऑब्जेक्ट से उन्हें नई जानकारी मिलती है, जो भविष्य की सुरक्षा रणनीति को और बेहतर बनाती है.