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Clean Energy From Air: हवा से बनाई जा सकती है बिजली, इंजीनियरों ने जेनेरिक एयर-जेन इफेक्ट को लेकर की नई खोज

मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट यूनिवर्सिटी के इंजीनियर जियाओमेंग लियू के नेतृत्व वाली एक टीम ने इसपर काम किया है. इसके तहत नम हवा में माइक्रोस्कोपिक वाटर ड्रॉप्लेट्स से उत्पन्न बिजली का उत्पादन किया जा सकता है. इस डिस्कवरी का नाम जेनेरिक एयर-जेन इफेक्ट दिया गया है. 

Clean Energy From Air Clean Energy From Air
हाइलाइट्स
  • इसे कहते हैं एयर-जीन इफेक्ट

  • कई संभावनाओं को खोलता है ये 

इंजीनियरों ने एक बार फिर से कमाल कर दिखाया है. नम हवा से भी ऊर्जा बनाई जा सकती है. हालांकि, ये अभी प्रैक्टिकल तौर पर मुमकिन नहीं है लेकिन इसके ऊपर रिसर्च की जा चुकी है. मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट यूनिवर्सिटी के इंजीनियर जियाओमेंग लियू के नेतृत्व वाली एक टीम ने इसपर काम किया है. इसके तहत नम हवा में माइक्रोस्कोपिक वाटर ड्रॉप्लेट्स से उत्पन्न बिजली का उत्पादन किया जा सकता है. साइंस की भाषा में इस डिस्कवरी का नाम जेनेरिक एयर-जेन इफेक्ट दिया गया है. 

हवा में होती है बिजली 

UMass Amherst के इंजीनियर Jun Yao कहते हैं, "हवा में भारी मात्रा में बिजली होती है. एक बादल के बारे में सोचें, जो पानी की बूंदों के द्रव्यमान से ज्यादा कुछ नहीं है. उन बूंदों में से प्रत्येक में एक चार्ज होता है, और जब स्थितियां सही होती हैं, तो बादल एक बिजली का बोल्ट पैदा कर सकता है. लेकिन हम नहीं जानते कि बिजली को बिजली से कैसे मजबूती से प्राप्त किया जाए. हमने जो किया है वह एक मानव निर्मित, छोटे पैमाने का बादल बनाना है जो हमारे लिए पूर्वानुमानित और निरंतर बिजली पैदा करता है.”

इसे कहते हैं एयर-जीन इफेक्ट 

शोधकर्ता आगे कहते हैं, "जियोबैक्टर खोज करने के बाद हमने जो महसूस किया वह यह है कि हवा से बिजली उत्पन्न करने की क्षमता - जिसे हम तब 'एयर-जीन प्रभाव' कहते हैं - सामान्य हो जाती है." वस्तुतः किसी भी प्रकार की सामग्री हवा से बिजली की कटाई या बिजली निकाली जा सकती है. जेनेरिक एयर-जीन डिवाइस एक पतले फिल्म मटेरियल से बना है, जैसे कि सेल्युलोज, रेशम प्रोटीन, या ग्राफीन ऑक्साइड.

ये हवा में पानी के नैनोपोर्स में आसानी से प्रवेश कर सकते हैं और फिल्म के ऊपर से नीचे तक यात्रा कर सकते हैं. लेकिन वे इस यात्रा के दौरान छिद्र के किनारों में चले जाते हैं. ये ट्रांसफर मटेरियल को चार्ज करते हैं, एक बिल्डअप का निर्माण करते हैं, और क्योंकि अधिक पानी के मॉलिक्यूल फिल्म के टॉप में चले जाते हैं, दोनों पक्षों के बीच एक चार्ज इम्बैलेंस हो जाता है. यह वैसा ही प्रभाव पैदा करता है जैसा हम बिजली पैदा करने वाले बादलों में देखते हैं. 

कई संभावनाओं को खोलता है ये 

फिलहाल, यह अभी शुरुआती दौर में है. टीम ने जिस सेल्युलोज फिल्म की टेस्टिंग की है उसमें सही वातावरण में 260 मिलीवोल्ट का सहज वोल्टेज आउटपुट था, जबकि एक मोबाइल फोन के लिए लगभग 5 वोल्ट के वोल्टेज आउटपुट की आवश्यकता होती है. याओ इसे लेकर कहते हैं, "ये विचार काफी सिंपल है, लेकिन इसे पहले कभी नहीं खोजा गया था. ऐसे में अब ये कई सारी संभावनाओं को  हमारे सामने खोल देता है.”