ARTIFICIAL TECHNOLOGY
ARTIFICIAL TECHNOLOGY आजकल ज्यातादर लोग आंखों की समस्या से जूझ रहे हैं. लेकिन जल्द ही इससे भी निजात मिल सकता है. वैज्ञानिकों ने एक ऐसी आर्टिफिशियल टेक्नोलॉजी के बारे में अध्ययन किया है जो रेटिना में हो रहे छोटे से छोटे बदलावों को भी पकड़ सकती है. इस टेक्नोलॉजी को गेम चेंजर कहा जा रहा है. इस टेक्नोलॉजी से लाखों लोगों को आंखों की रोशनी खोने और अंधेपन से बचाने में मदद मिल सकती है.
डीप लर्निंग मॉडल पर हुआ है काम
बताते चलें कि ये इस डीप लर्निंग मॉडल पर मोनाश यूनिवर्सिटी ने तीन साल से अध्ययन कर रही है. इससे जीपी और हेल्थकेयर प्रोफेशनल रेटिनल वेन ऑक्लूजन (आरवीओ) के जोखिम का पता लगाने और भविष्यवाणी करने में मदद कर सकते हैं. रेटिनल वेन ऑक्लूजन तब होता है जब खून का थक्का आंख की रेटिना में एक नस को ब्लॉक कर देता है.
इस टेक्नोलॉजी में दिल के दौरे और स्ट्रोक के जोखिम के बारे में पहले ही भविष्यवाणी करने की क्षमता भी है. इसका कारण है कि हमारा रेटिना सेंट्रल नर्वस सिस्टम और शरीर के अन्य हिस्सों से बहुत करीब से जुड़ा हुआ होता है.
क्या है रेटिनल वेन ऑक्लूजन बीमारी?
इस स्टडी के लेखक, एसोसिएट प्रोफेसर जोंगयुआन जीई ने इसके बारे में कहा कि रेटिनल वेन ऑक्लूजन दुनिया में दूसरी सबसे आम रेटिनल वैस्कुलर बीमारी है, जो अनुमानित 1.6 करोड़ लोगों को प्रभावित करती है. अगर इसका इलाज बहुत देर से होता है तो व्यक्ति इससे अपनी आंखों की रोशनी खो सकता है, या गंभीर मामलों में अंधापन भी हो सकता है.
RVO तब हो सकता है जब आंखों की नसें बहुत संकरी हों. इसके अलावा ये उन लोगों को ज्यादा होता है जो डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, या हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या से गुजर रहे होते हैं.