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वैज्ञानिक का कमाल! अब बढ़ेगी सैटेलाइट्स की लाइफ, स्पेस में लगेगा फ्यूल स्टेशन

भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) में एक उद्यमी रिसर्चर ने स्पेस में एक ऑरबिट ईंधन स्टेशन और सर्विसिंग सेंटर की तकनीक विकसित करने पर काम कर रहे हैं. ऐसा करने के पीछे का उनका उद्देश्य सैटेलाइट्स की लाइफ बढ़ने के साथ ही स्पेस गार्बेज को कम करना है.

Satellite Satellite
हाइलाइट्स
  • स्पेस में एक ऑर्बिटल फ्यूल स्टेशन बनाने की योजना

  • स्पेस में सैटेलाइट की लाइफ बढ़ाना उद्देश्य

भारत अंतरिक्ष में एक और मुकाम हासिल करने के लिए अपना कदम बढ़ाने जा रहा है. इस बार देश के वैज्ञानिक हवा में ईंधन भरने की तकनीक को अगले स्तर पर ले जाने के लिए तैयारी कर रही है. भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) में रिसर्चर अंतरिक्ष में एक ऑरबिट ईंधन स्टेशन और सर्विसिंग सेंटर के साथ ही सैटेलाइट में ईंधन भरने की तकनीक विकसित करने पर काम कर रहे हैं. अगर ऐसा हो जाता है तो यह दुनिया का पहला ऐसा वेंचुर होगा. 

ये है इसका उद्देश्य
स्पेस में सैटेलाइट में ईंधन भरने की तकनीक विकसित करने के पीछे का उद्देश्य उनकी लाइफ बढ़ाने के साथ ही स्पेस में उनकी लॉन्चिंग को कम करना भी है. इस तकनीक के विकसित होने के बाद आने वाले वर्षों में अंतरिक्ष में मलबा को कम करना, पुराने सैटेलाइट के बदले नए सैटेलाइट को लॉन्च करने की लागत में कमी लाना है. इसपर काफी पहले से ही 34 वर्षीय उद्यमी शोधकर्ता शक्तिकुमार आर काम कर रहे हैं. उनका पहले से ही ऑर्बिटएड एयरोस्पेस नाम का एक स्टार्टअप है. जिसे IISc के MSME सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में इनक्यूबेट किया जाता है. 

ऐसे करेगा काम
शक्तिकुमार के मुताबिक वह एक इन-ऑर्बिट री-फ्यूलिंग तकनीक विकसित किया जा रहा है. जिसके तहत जल्द ही स्पेस में एक ऑर्बिटल फ्यूल स्टेशन बनाने की भी योजना बना रहे हैं. उन्होंने बताया कि किसी सेटेलाइट की लाइफ उसकी ईंधन क्षमता पर निर्भर करती है. ईंधन और सर्विसिंग की कमी के कारण कोई भी सैटेलाइट के जल्द ही कबाड़ बनने में ज्यादा समय नहीं लगता है. उनके जरिए विकसित की जा रही तकनीक से सैटेलाइट के कार्य में बिना किसी तरह की बाधा पहुंचाए बिना उसमें फ्यूल भर देगा. 

इसके लिए ये तकनीक की डेवलप
शक्तिकुमार के मुताबिक वह सैटेलाइट में फिर से ईंधन भरने के लिए इंटरफेस डॉकिंग और री-फ्यूलिंग पोर्ट नामक एक प्रोडक्ट विकसित कर रहे हैं. ये फिल और ड्रेन वाल्व हो जो सैटेलाइट में रिफ्यूलिंग के लिए डेवलप किया जा रहा है. इस तकनीक को हम दो साल में जमीन पर उतारने की कोशिश कर रहे हैं. इसके साथ ही इसे हम ऑर्बिटल में लॉन्च करने के लिए इसरो समेत कुछ अंतरराष्ट्रीय भागीदारों से बात कर रहे हैं.