Holoporting
Holoporting हम अक्सर हॉलीवुड फिल्मों में 'होलोपोर्टिंग' वाली टेक्नोलॉजी देखते हैं. जिसमें इंसान एक जगह होकर भी दूसरी जगह पहुंच जाता है. इस टेक्नोलॉजी में एक तरह से हमारी 3डी इमेज दूसरे इंसान से बात करने लगती है. अब इसी कड़ी में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने स्पेस कम्युनिकेशन में एक बड़ी कामयाबी हासिल की है. इससे आसानी से लोग धरती से स्पेस में संपर्क कर सकेंगे. हालांकि, अभी तक 'होलोपोर्टिंग' की केवल टेस्टिंग चल रही है. इसकी टेस्टिंग इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर की गई है.
क्या है होलोपोर्टिंग?
शाब्दिक अर्थ पर जाएं तो 'होलोपोर्टिंग' का मतलब है होलोग्राम और टेलिपोर्टेशन. ये इसी का मिक्सचर है. ये टेस्ट नासा के फ्लाइट सर्जन डॉ जोसेफ श्मिड ने किया है. टेस्टिंग के दौरान वे स्पेस स्टेशन पर दिख रहे थे लेकिन उस समय वे स्पेस में बैठे एस्ट्रोनॉट से बात कर रहे थे.
द न्यू यॉर्क पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, डॉ जोसेफ श्मिड कहते हैं कि ये कांटेक्ट करने का एक नया तरीका है. इससे हम एक बेहतर तरीके से ह्यूमन एक्सप्लोरेशन कर पाएंगे. इसकी मदद से इंसान आसानी से धरती पर रहते हुए भी धरती के बाहर या स्पेस में बातचीत कर पाएंगे.
कैसे होता है इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल?
अब इस टेक्नोलॉजी की प्रक्रिया की बात करें, तो इसमें थ्री डी इमेज बनाने के लिए हाई-टेक कैप्चर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें जिस भी इंसान को कांटेक्ट करना होता है वो एक मिक्स्ड रियलिटी डिस्प्ले का यूज करता है, ताकि वो आसानी से होलोग्राम को देख, सुन और उससे बातचीत कर सके.