
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ ज़िले में स्थित रावतभाटा अपनी प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक धरोहरों और वैज्ञानिक उपलब्धियों के कारण अब देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है. पहले रावतभाटा अपनी बारोली मंदिरों, चूलिया फॉल्स और चंबल नदी के खूबसूरत नज़ारों के लिए जाना जाता था, लेकिन अब यह कस्बा भारत के सबसे बड़े न्यूक्लियर हब के रूप में तेजी से उभर रहा है.
रावतभाटा- जहां इतिहास और विज्ञान का संगम
रावतभाटा की पहचान कभी 10वीं शताब्दी के बारोली मंदिरों और चंबल नदी की खूबसूरती से होती थी, लेकिन 1973 में यहां परमाणु बिजली घर की स्थापना के बाद यह कस्बा वैज्ञानिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण बन गया.
1964 में जब इस परियोजना का काम शुरू हुआ, तभी से यहां देशभर के वैज्ञानिक और उनके परिवार बसने लगे. धीरे-धीरे रावतभाटा की संरचना बदलती चली गई और यहां की गलियों, पार्कों और कॉलोनियों पर विज्ञान की गहरी छाप छोड़ने लगी.
हर नाम में है विज्ञान
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, रावतभाटा में बने परमाणु बिजली घर (Rajasthan Atomic Power Station) और यहां स्थापित न्यूक्लियर फ्यूल कॉम्पलेक्स (NFC) ने इस कस्बे को न्यूक्लियर हब बना दिया है. यहीं नहीं, यहां की कॉलोनियों, गलियों और पार्कों के नाम भी इस कस्बे की पहचान को और खास बनाते हैं.
न्यूक्लियर फ्यूल कॉम्पलेक्स (NFC): एशिया का सबसे बड़ा परमाणु ईंधन संयंत्र
रावतभाटा में निर्माणाधीन न्यूक्लियर फ्यूल कॉम्पलेक्स (NFC) देश का दूसरा और एशिया का सबसे बड़ा परमाणु ईंधन उत्पादन केंद्र होगा.
इस संयंत्र के चालू होने के बाद भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता में बड़ा इजाफा होगा.
NFC के लिए विशेष ‘परमाणु ग्राम’ विकसित किया जा रहा है, जिसमें वैज्ञानिकों और कर्मचारियों के लिए आवासीय कॉम्प्लेक्स, आधुनिक सुविधाएं और हाई सिक्योरिटी व्यवस्था होगी. इससे रावतभाटा देश के न्यूक्लियर मैप पर एक प्रमुख स्थान प्राप्त करने जा रहा है.
रावतभाटा का बदलता चेहरा
रावतभाटा अब सिर्फ़ पर्यटन स्थल नहीं रहा, बल्कि यह भारत की ऊर्जा क्रांति का अहम केंद्र बन चुका है. रावतभाटा एक ऐसा अनोखा कस्बा है जहां आप बारोली मंदिरों की प्राचीन कला देख सकते हैं, चूलिया फॉल्स की अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकते हैं, और साथ ही भारत की परमाणु शक्ति की झलक भी पा सकते हैं.
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