

क्या आपने कभी रात के आसमान में टिमटिमाते लाल रंग के ग्रह को देखा है? जी हां, हम बात कर रहे हैं मंगल ग्रह की, जिसे दुनिया भर में 'लाल ग्रह' के नाम से जाना जाता है! प्राचीन काल से लोग मंगल को देखते और इसके लाल रंग को खून से जोड़कर इसे युद्ध के देवता का नाम दे देते थे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मंगल का यह लाल रंग असल में कहां से आता है? और इसके बर्फीले ध्रुवों में क्या राज छुपा है?
खून नहीं, लोहे का कमाल!
जब आप मंगल ग्रह को देखते हैं, तो उसका लाल रंग आपको चौंका देता है. प्राचीन रोमनों ने इसे अपने युद्ध के देवता मार्स के नाम पर रखा, क्योंकि इसका रंग उन्हें खून की याद दिलाता था. लेकिन असल में मंगल का लाल रंग खून से नहीं, बल्कि इसकी सतह पर मौजूद आयरन ऑक्साइड (जंग) से आता है. जी हां, वही जंग जो पृथ्वी पर लोहे की चीजों को लाल-भूरा कर देती है! मंगल की चट्टानों और धूल में आयरन ऑक्साइड की मात्रा इसे लाल रंग देती है.
रोचक बात यह है कि हमारे खून का लाल रंग भी हीमोग्लोबिन में मौजूद लोहे और ऑक्सीजन के मिश्रण से आता है. तो, प्राचीन लोगों का मंगल और खून का संबंध जोड़ना पूरी तरह गलत भी नहीं था! लेकिन अगर आप मंगल की तस्वीरों को गौर से देखें, तो यह सिर्फ लाल नहीं, बल्कि भूरा, नारंगी और हल्का पीला-सा दिखता है. यह रंगों का खेल मंगल को और भी रहस्यमयी बनाता है!
मंगल की सतह पर रोवर की आंखें
मंगल की सतह को करीब से देखने के लिए नासा ने कई रोवर और अंतरिक्ष यान भेजे हैं. 1976 में वाइकिंग लैंडर, जो मंगल पर उतरने वाला पहला अंतरिक्ष यान था, ने इसकी सतह की तस्वीरें भेजीं. इन तस्वीरों में मंगल की जमीन लाल-नारंगी धूल से ढकी दिखी, जो आयरन ऑक्साइड की वजह से थी. लेकिन मंगल की पूरी सतह एक रंग की नहीं है. इसके ध्रुवों पर बर्फीली टोपियां (आइस कैप्स) हैं, जो सफेद दिखती हैं.
ये बर्फीली टोपियां पानी की बर्फ से बनी हैं, जैसे पृथ्वी पर होती हैं, लेकिन इनके ऊपर ड्राई आइस (जमे हुए कार्बन डाइऑक्साइड) की एक परत होती है. मजेदार बात यह है कि मंगल के मौसम के हिसाब से ये बर्फीली टोपियां सिकुड़ती और बढ़ती रहती हैं. जब सूरज की रोशनी पड़ती है, तो ड्राई आइस तेजी से भाप बनकर उड़ जाती है, और जब अंधेरा होता है, तो यह फिर से जम जाती है. यह प्रक्रिया मंगल को और भी अनोखा बनाती है!
मंगल के रंग
मंगल सिर्फ उन रंगों तक सीमित नहीं है, जो हमारी आंखें देख सकती हैं. वैज्ञानिक विशेष कैमरों का उपयोग करके मंगल को अल्ट्रावायलेट और इन्फ्रारेड लाइट में देखते हैं. ये रंग हमारी आंखों को नहीं दिखते, लेकिन इनसे मंगल की सतह और वायुमंडल के बारे में नई जानकारी मिलती है.
उदाहरण के लिए, इन्फ्रारेड तस्वीरें ऐसी होती हैं, जिनमें वैज्ञानिक "नकली रंग" (फॉल्स कलर्स) जोड़ते हैं, ताकि तस्वीर को समझना आसान हो. ये तस्वीरें मंगल की सतह पर मौजूद चट्टानों, बर्फ, और अन्य संरचनाओं को उजागर करती हैं. नासा का MAVEN अंतरिक्ष यान, जो 2013 में लॉन्च हुआ था, ने मंगल की सतह और वायुमंडल की अल्ट्रावायलेट तस्वीरें लीं, जिनसे वैज्ञानिकों को मंगल के इतिहास के बारे में नई जानकारियां मिलीं.
पानी, ज्वालामुखी और जीवन की खोज
मंगल की सतह पर वैज्ञानिकों को प्राचीन झीलों, बारिश, और बर्फ के सबूत मिले हैं. वैलेस मैरिनेरिस, जो पृथ्वी के ग्रैंड कैन्यन से भी बड़ा है, शायद कभी बहते पानी से बना था. वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि मंगल पर कितने समय तक पानी मौजूद था और क्या वहां कभी जीवन था. इसके अलावा, मंगल के ज्वालामुखी, वायुमंडल, और इसकी बनावट के बारे में भी नई खोजें हो रही हैं.
वैज्ञानिक अब रेडियो तरंगों, माइक्रोवेव, एक्स-रे, और गामा किरणों का उपयोग करके मंगल की तस्वीरें ले रहे हैं. हर नई तस्वीर मंगल के रहस्यों को और खोल रही है. मंगल का हर रंग, हर धब्बा, और हर निशान हमें इसके अतीत और भविष्य के बारे में कुछ नया बताता है.
प्राचीन काल से लेकर आज तक, मंगल ग्रह इंसानों को आकर्षित करता रहा है. इसका लाल रंग, बर्फीले ध्रुव, और रहस्यमयी सतह हमें बार-बार सोचने पर मजबूर करती है. क्या मंगल पर कभी जीवन था? क्या हम एक दिन वहां बस पाएंगे? इन सवालों के जवाब खोजने के लिए वैज्ञानिक दिन-रात मेहनत कर रहे हैं.
तो, अगली बार जब आप रात में आसमान में लाल रंग का एक तारा देखें, तो याद रखें- यह सिर्फ एक ग्रह नहीं, बल्कि रहस्यों से भरी एक पूरी दुनिया है!