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दुखी होने पर आप भी सुनते हैं Sad Songs? IIT के शोधकर्ताओं ने बताया ट्रेजेडी पैराडॉक्स के पीछे का कारण 

दुखी होने पर हम अक्सर Sad Songs सुनते हैं. हालांकि, ऐसा क्यों होता है इसके पीछे की वजह आज तक कोई नहीं समझ पाया है. अब इसी कड़ी में IIT मंडी के शोधकर्ताओं ने ट्रेजेडी पैराडॉक्स के पीछे का कारण बताया है.

ट्रेजेडी पैराडॉक्स के पीछे का कारण ट्रेजेडी पैराडॉक्स के पीछे का कारण
हाइलाइट्स
  • 20 लोगों पर किया गया शोध 

  • सैड म्यूजिक से बढ़ जाती है ब्रेन एक्टिविटी

हम अक्सर दुखी होते हैं तो सैड सॉन्ग सुनते हैं. हालांकि, इसका कारण आजतक कोई नहीं समझ पाया है कि दुखी होने पर भी दुख वाले गाने सुनने से रिलीफ क्यों मिलता है. क्या आपने कभी सोचा है कि हम ऐसा क्यों करते हैं. साइंस की भाषा में हम इसे ट्रेजेडी पैराडॉक्स कहते हैं. इसी के पीछे का कारण जानने के लिए आईआईटी मंडी के शोधकर्ता शोध कर रहे हैं. 

आईआईटी मंडी के डायरेक्टर लक्ष्मीधर बेहरा के अनुसार, संगीत में हमारी भावनाओं को प्रभावित करने की एक शक्तिशाली क्षमता होती, और यह कोई रहस्य नहीं है कि लोग अक्सर अपने मूड को बेहतर बनाने या मुश्किल समय में संगीत का सहारा लेते हैं. म्यूजिक अपने आप में एक हीलिंग रेमेडी कहा जाता है. 

क्यों हम लेते हैं म्यूजिक का सहारा?

इसे लेकर आईआईटी मंडी के डायरेक्टर लक्ष्मीधर बेहरा कहते हैं, “जब हम अपनी उदासी को कम करना चाहते हैं तब भी हम उदास संगीत की तलाश क्यों करते हैं? उदासी से बचने के हमारी स्वाभाविक आदत के बावजूद भी कला के रूप में भावनाओं को व्यक्त करना एक स्थायी अपील होती है. कोई भी सुंदर की चीज हमेशा हमें खुशी देती है. ये हमें बेहतर महसूस कराती है.” आईआईटी डायरेक्टर आगे कहते हैं हम यह जानना चाहते थे कि प्रतिकूल अनुभव होने के बाद उदास संगीत सुनने पर मस्तिष्क कैसे प्रतिक्रिया करता है? 

20 लोगों पर किया गया शोध 

इस रिसर्च में 20 लोगों को शामिल किया गया. शोधकर्ताओं ने अलग-अलग परिस्थितियों में 20 लोगों के ब्रेन में हो रही एक्टिविटी को मापने के लिए इलेक्ट्रोएन्सेफ्लोग्राफी (ईईजी) का उपयोग किया. ये सभी 20 लोग वो थे जिनके पास किसी तरह की कोई भी म्यूजिक ट्रेनिंग नहीं थी. ऐसा इसलिए किया गया ताकि वे लोग किसी म्यूजिक के चलने का बाद पहले से सोचा हुआ रिएक्शन न दे पाएं. 

सैड म्यूजिक से बढ़ जाती है ब्रेन एक्टिविटी

ईईजी को इसमें तीन तरह से मापा गया. पहले में, ईईजी को बिना किसी इनपुट के यानि बेसलाइन में रिकॉर्ड किया गया. दूसरे में, ईईजी तब नोट किया गया जब प्रतिभागियों ने एक दुखद अनुभव को याद किया और इसके बारे में लिखा, जिसे हम द सैड ऑटोबायोग्राफिकल रिकॉल (Sad Autobiographical Recall) या एसएआर कंडिशन कहते हैं.

वहीं तीसरे में, ईईजी को तब मापा गया जब लोगों को एक भारतीय शास्त्रीय राग "मिश्रा जोगिया" सुनवाया गया. इस संगीत का चयन पांच संगीत विशेषज्ञों के एक पैनल द्वारा किया गया था. इसे "करुणा रस" के बारे में बताने के लिए किया जाता है. बताते चलें, शोधकर्ताओं ने इसमें पाया कि एक दुखद अनुभव को याद करने पर, गामा वेव एक्टिवटी में वृद्धि होती है. वहीं उदास संगीत सुनने से मस्तिष्क की अल्फा एक्टिविटी बढ़ जाती है.