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हिम्मत की मिसाल! 4 ब्रेन सर्जरी और पैरालिसिस को हराकर पैरा टेबल टेनिस चैंपियन बनी भारत की यह बेटी, पैरालिंपिक में खेलने का सपना

गुजरात की ध्वनि शाह हर उस इंसान के लिए प्रेरणा हैं जो जरा सी मुश्किल पड़ते ही हार मान लेते हैं. लोगों को ध्वनि से सीखना चाहिए कि स्थिति जैसी भी हो आपकी मेहनत आपको अपनी मंजिल तक पहुंचा देती है.

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हाइलाइट्स
  • ध्वनि सात साल की उम्र से ही ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित हैं

  • हो चुकी है ब्रेन की चार सर्जरी

कहते हैं कि अगर इंसान में हिम्मत और हौसला हो तो नामुमकिन को भी मुमकिन किया जा सकता है. जैसा कि राजकोट की ध्वनि शाह इस बात का जीता जागता उदाहरण है. ध्वनि शाह (26) का सपना पैरालिंपिक में भाग लेना और चैंपियन बनना है. ध्वनि ने इंदौर में पैरा टेबल टेनिस राष्ट्रीय चैंपियनशिप 2022-23 में महिला एकल में दूसरा स्थान हासिल किया और अब वह इस अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में भाग ले सकती हैं. यह अपने आप में एक आश्चर्यजनक उपलब्धि है. 

हो चुकी हैं 4 सर्जरी
ध्वनि सात साल की उम्र से ही ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित हैं. उनकी चार ओपन ब्रेन सर्जरी हो चुकी हैं, जिनमें से तीन उनके 11 साल की होने से पहले की गई थीं. चौथी सर्जरी, 2016 में, ट्यूमर को हटाने के लिए हुई थी. लेकिन इससे उनके शरीर के पूरे बाएं हिस्से को लकवा मार गया था. इस मुकाम तक पहुंचने के लिए ध्वनि ने 4 ब्रेन सर्जरी और पैरालिसिस को मात दी है. एक समय था जब ध्वनि शाह के पैर कांपते थे. लेकिन खुद पर उनका आत्मविश्वास दृढ़ रह, इसलिए वह जीवन में और टेबल-टेनिस टेबल पर लड़ाई जीतती चली गईं.

द टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, ध्वनि का सपना किसी दिन ओलंपिक में खेलना और चैंपियन बनना है, जैसे क्रिकेट में धोनी और टीटी में ध्वनि. यह दूसरी बार था जब ध्वनि ने किसी राष्ट्रीय टूर्नामेंट में भाग लिया. ध्वनी ने कहा, "मैंने खेलों के लिए अपना जुनून कभी नहीं छोड़ा. मैं अब एक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में खेलने के लिए योग्य हूं और इसके लिए फंड इकट्ठा कर रही हूं."

परिवार ने हमेशा दिया साथ
ध्वनि के यहां तक पहुंचने में उनके माता-पिता, भावेश और कल्पना, और दादी अरुणाबेन का पूरा योगदान रहा है. उन्होंने अपनी बच्ची का इलाज खोजने में कोई कसर नहीं छोड़ी. राजकोट और अहमदाबाद में डॉक्टरों और अस्पतालों की भाग-दौड़ के बीच, उन्होंने ध्वनि के खेल के प्रति अपने जुनून को भी बनाए रखा. जब भी उसे देश के किसी भी हिस्से में खेलने के लिए चुना जाता है, पूरा परिवार उसके साथ समर्थन और हौसला अफजाई के लिए जाता है.

हालांकि, बहुत से लोग ऐसे भी रहे जो ध्वनि का हौसला कम करने की कोशिश करते थे. खासकर स्कूल में दूसरे बच्चे उन्हें छेड़ते थे और वहां उन्हें खेलों में भाग लेने की अनुमति नहीं थी क्योंकि वह अन्य बच्चों की तरह सामान्य नहीं थीं.  हालांकि, उन्होंने कभी खेलना कभी बंद नहीं किया और जीएसआरटीसी स्टाफ क्वार्टर फैसिलिटी में वह अकेले खेलती थीं. 

तमाम मुश्किलों को हराकर बनीं चैंपियन
ध्वनि ने बाल भवन में भी खेला है. खेल महाकुंभ में डिस्कस थ्रो और शॉट पुट स्पर्धाओं में भी हिस्सा ले चुकी हैं. ध्वनि के पिता जीएसआरटीसी में क्लर्क हैं. उन्होंने कहा कि उन्होंने वह सब कुछ करने की कोशिश की जो वह कर सकते थे. लेकिन कोई भी कोच फीस लेने के बाद भी उनकी बेटी को प्रशिक्षित करने के लिए तैयार नहीं है.

उनका कहना है कि कोच दिव्यांगों को सिखाने में दिलचस्पी नहीं रखते हैं. लेकिन ध्वनि ने अपने दम पर सबकुछ सीखा है. आपको बता दें कि ध्वनि की आखिरी सर्जरी 2016 में की गई थी। इससे पहले उसका ब्रेन ट्यूमर हर दो साल में विकसित होता था. लेकिन अब उनके माता-पिता उस समय को याद नहीं करना चाहते हैं ब्लकि अब वे ध्वनि को ओलंपिक में खेलते हुए देखना चाहते हैं.