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नहीं है एक हाथ... फिर भी आंखों पर पट्टी बांधकर बैडमिंटन खेलकर बनाया रिकॉर्ड

इस दुर्घटना में केसर ने अपना दाहिना हाथ खो दिया. जहां एक ओर खेलने की उम्र में अस्पतालों के चक्कर और इलाज की थकान ने उसे घेर लिया.

Kesar Pareek Kesar Pareek

सपनों को कभी हाथों की जरूरत नहीं होती, सिर्फ जज़्बे और हौसले की दरकार होती है और इस कहावत को हकीकत में बदलकर दिखाया है 13 वर्षीय केसर पारीक ने, जो आज लाखों लोगों के लिए एक मिसाल बन चुकी हैं. राजस्थान की राजधानी जयपुर की गलियों में पली-बढ़ी केसर पारीक एक आम बच्ची थी. खेलों से लगाव, मुस्कुराता चेहरा और आंखों में तमाम सपने. लेकिन महज 10 साल की उम्र में एक दर्दनाक हादसा उसकी ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल गया.

इस दुर्घटना में केसर ने अपना दाहिना हाथ खो दिया. जहां एक ओर खेलने की उम्र में अस्पतालों के चक्कर और इलाज की थकान ने उसे घेर लिया, वहीं दूसरी ओर उसकी उम्मीद और आत्मबल ने उसे कभी टूटने नहीं दिया.

एक हादसे के बाद शुरू हुई एक नई कहानी
केसर कहती है, “कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है.” और यही सोच लेकर उन्होंने अपने संघर्ष को अपनी ताकत में बदल दिया. हादसे के महज 6 महीने बाद ही केसर ने अपने बाएं हाथ में बैडमिंटन का रैकेट थाम लिया और आंखों पर पट्टी बांधकर घंटों अभ्यास करने लगीं.

केसर ने ब्लाइंडफोल्ड बैडमिंटन प्रतियोगिता में आंखों पर पट्टी बांधकर 5 मिनट तक लगातार बैडमिंटन खेलकर अपना नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स (IBR) और गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज करा लिया है. यह उपलब्धि उन्हें देश की सबसे कम उम्र की पैरा एथलीटों में से एक बनाती है.

केवल बैडमिंटन ही नहीं, शूटिंग में भी कमाल
इतना ही नहीं, केसर को उनकी खेल प्रतिभा के लिए राज्य स्तरीय 10 मीटर एयर पिस्टल शूटिंग प्रतियोगिता में भी चयन मिला है. अब उनका सपना है कि वह एक दिन भारत का प्रतिनिधित्व करें और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर देश का परचम लहराएं.

ध्यान, अनुशासन और मां की प्रेरणा
केसर मानती हैं कि ब्लाइंडफोल्ड बैडमिंटन में ध्यान केंद्रित करना सबसे ज़रूरी होता है. इसके लिए उन्होंने नियमित मेडिटेशन करना शुरू किया, जिससे उन्हें शटल की दिशा और मूवमेंट का एहसास करने में मदद मिली. उन्होंने अपनी डाइट का भी सख्ती से पालन किया और पिछले 6 महीनों से जंक फूड और मिठाइयां पूरी तरह से त्याग दी हैं.

केसर की इस प्रेरणादायक यात्रा में सबसे अहम भूमिका निभाई उनकी मां नंदा पारीक ने. उन्होंने कभी भी केसर को महसूस नहीं होने दिया कि वह कुछ करने में पीछे है. मां का कहना है, “हादसे के बाद जैसे ज़िंदगी थम गई थी, लेकिन हमने हार नहीं मानी. हमने घर का माहौल पॉजिटिव रखा और उसकी हर कोशिश में साथ दिया. आज केसर हमारे लिए ही नहीं, पूरे समाज के लिए प्रेरणा है.”

केसर की कहानी सिर्फ एक बच्ची की नहीं है, यह हर उस व्यक्ति की कहानी है जिसने कभी हालात के सामने हार मान ली थी. वह बताती है कि मुसीबतें आएंगी, हम टूटेंगे भी, लेकिन अगर खुद से हार नहीं मानी, तो हम हर बाधा को पार कर सकते हैं. आज केसर पारीक हमें यह सिखाती हैं कि सच्चा चैंपियन वही होता है जो अपने जज़्बे से हर असंभव को संभव बना दे.

(विशाल शर्मा की रिपोर्ट)