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एयरफोर्स के जवान का टीम इंडिया तक का सफर, जानें सौरभ कुमार की Joshtype कहानी

सौरभ अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं, “अब, हम गाजियाबाद में रहते हैं लेकिन दिल्ली में क्रिकेट खेलने के उन शुरुआती दिनों में, यह एक बड़ा चैलेंज था. बागपत जिले के शहर बड़ौत में हमारे पास कोचिंग की अच्छी सुविधा नहीं थी. इसलिए मुझे नेशनल स्टेडियम में अपनी ट्रेनिंग के लिए दिल्ली आने के लिए रोजाना ट्रेन लेनी पड़ती थी.”

Saurabh Kumar Saurabh Kumar
हाइलाइट्स
  • भारत के लीजेंडरी स्पिनर बिशन सिंह बेदी ने पहचाना टैलेंट

  • 2018-19 और 2019-20 की रणजी ट्रॉफी में ले चुके हैं 95 विकेट

इंडियन एयरफोर्स के जवान सौरभ कुमार 7 साल पहले अपने करियर को लेकर काफी कंफ्यूज थे......लेकिन अब वो इंडियन क्रिकेट टीम में अपनी जगह बना चुके हैं. उत्तर प्रदेश के बागपत के रहने वाले सौरभ लेफ्ट-आर्म स्पिनर हैं.  28 साल के ऑलराउंडर सौरभ को श्रीलंका के खिलाफ 2 टेस्ट सीरीज के लिए बीसीसीआई ने टीम में जगह दी है. हाल ही में उन्हें दक्षिण अफ्रीका दौरे पर गई टेस्ट टीम में स्टैंडबाई खिलाड़ी के रूप में जगह दी गई थी.

दिल के एक हिस्से में शुरू से ही बना ली थी क्रिकेट ने जगह 

सौरभ पीटीआई को दिए अपने इंटरव्यू में बताते हैं कि भारतीय वायुसेना में होने के बावजूद भी उनके दिल का एक हिस्सा ऐसा भी था जिसमें क्रिकेट ने अपनी जगह बना ली थी. वे कहते हैं, “मैं दिल्ली में पोस्टेड था, 2014-15 सीजन में मैं रणजी के लिए खेला था, उस वक्त हमारे कप्तान रजत पालीवाल थे. चूंकि मैं एक स्पोर्ट्स कोटा एंट्री था, इसलिए मुझे सर्विसेज के लिए खेलने के अलावा कोई ड्यूटी नहीं करनी पड़ी. अगर मैंने क्रिकेट छोड़ दिया होता, तो मुझे फुल-टाइम ड्यूटी करनी पड़ती.” 

कैसा है फैमिली बैकग्राउंड?

एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले सौरभ के पिता ने ऑल इंडिया रेडियो में जेई (जूनियर इंजीनियर) के रूप में काम किया है. उनके माता-पिता ने शुरू से ही उनका साथ दिया. वे बताते हैं, "जब मैंने अपने माता-पिता से कहा कि मैं वायु सेना की नौकरी छोड़ रहा हूं, तो उन्होंने मुझे एक बार भी से सोचने के लिए कहा. दोनों शुरू से ही काफी सपोर्टिव रहे हैं. मैंने वायुसेना छोड़ने का फैसला किया था, लेकिन जब मैंने देखा कि माता-पिता मेरे साथ हैं, तो मुझे अपने सपने पर पूरा भरोसा हो गया था. 

खेलने के लिए रोज बागपत से लेते थे दिल्ली तक की ट्रेन 

आपको बता दें, सौरभ की कोच सुनीता शर्मा भारत की पहली महिला क्रिकेट कोच हैं. सौरभ अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं, “अब, हम गाजियाबाद में रहते हैं लेकिन दिल्ली में क्रिकेट खेलने के उन शुरुआती दिनों में, यह एक बड़ा चैलेंज था. बागपत जिले के शहर बड़ौत में हमारे पास कोचिंग की अच्छी सुविधा नहीं थी. इसलिए मुझे नेशनल स्टेडियम में अपनी ट्रेनिंग के लिए दिल्ली आने के लिए रोजाना ट्रेन लेनी पड़ती था.”

वे कहते हैं, “अगर मेरी ट्रेनिंग की टाइमिंग दोपहर 2:00 बजे की होती थी, तो मैं सुबह 10 बजे घर से निकलता था. ट्रेन से ये सफर साढ़े तीन घंटे का होता था और स्टेडियम तक पहुंचने के लिए आगे आधा घंटा और लगता था. लेकिन कभी-कभी हमें न चाहते हुए भी कुछ फैसले लेने पड़ते हैं.”

2018-19 और 2019-20 की रणजी ट्रॉफी में ले चुके हैं 95 विकेट 

आपको बताते चलें, साल 2018-19 और 2019-20 की रणजी ट्रॉफी में सौरभ कुमार 95 विकेट ले चुके हैं. वे कहते हैं, "जब आप 15 या 16 साल के होते हैं, तो आपको पता नहीं चलता. आपके पास इतना जुनून होता है कि कुछ भी मुश्किल नहीं लगता है. 

भारत के लीजेंडरी स्पिनर बिशन सिंह बेदी ने पहचाना टैलेंट 

सौरभ कुमार के टैलेंट को सबसे पहले भारत के लीजेंडरी स्पिनर बिशन सिंह बेदी ने पहचाना.  तब दिन में, बेदी समर कैंप आयोजित करते थे. वहां बहुत सारे खिलाड़ी प्रैक्टिस करते थे. सौरभ बताते हैं, “बेदी सर ने मेरी गेंदबाजी जब देखी तो उन्होंने खूब पसंद किया. उन्होंने मुझे छोटी-छोटी चीजों के बारे में बारीकियों से क्रिकेट की दुनिया से परिचित कराया.” 

सौरभ आगे बताते हैं कि जब उन्होंने यूपी की टीम में एंट्री की तो उस वक्त पूर्व कीपर मनोज मुद्गल ने उनका काफी सपोर्ट किया. उस समय सौरभ ने 196 विकेट और 1572 रन अपने नाम किये.  

सफलता की कुंजी मेहनत ही है 

सौरभ कहते हैं कि किसी भी काम में सफलता की कुंजी केवल मेहनत है. वे कहते हैं, “मैं किसी भी चीज में लगा रह सकता हूं. एक मैच का जिक्र करते हुए वे कहते हैं कि यह एक सपने के सच होने जैसा था क्योंकि मुझे विराट कोहली, केएल राहुल जैसे सीनियर भारतीय खिलाड़ियों के बीच गेंदबाजी करने का मौका मिला. 

बता दें, सौरभ को साल 2017 में राइजिंग पुणे सुपरजायंट्स ने 10 लाख रुपये में खरीदा था. हालांकि इसबार वे इसका पार्ट नहीं हैं. लेकिन उन्हें इसका कोई मलाल नहीं है. वे कहते हैं, "मुझे इसका एक प्रतिशत भी खेद नहीं है. यही जिंदगी है. जिंदगी में उतार-चढ़ाव तो लगे ही रहते हैं.  ज़रूरत है तो बस लगे रहने की. आपको बस रुकने की जरूरत है, मैं यही कर रहा हूं.”