
रामगंजमंडी की बैडमिंटन खिलाड़ी गौरांशी शर्मा ने एक बार फिर कोटा और राजस्थान का मान बढ़ा दिया है. अहमदाबाद में आयोजित राष्ट्रीय चयन ट्रायल्स में शानदार प्रदर्शन करते हुए गौरांशी का चयन नवंबर 2025 में टोक्यो में होने वाले 25वें ग्रीष्मकालीन डेफ ओलिंपिक के लिए हुआ है.
अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर शानदार सफर
गौरांशी ने अब तक 6 अंतरराष्ट्रीय और 13 राष्ट्रीय पदक अपने नाम किए हैं. इनमें 2 स्वर्ण, 1 रजत और 3 कांस्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, जबकि 2 स्वर्ण, 6 रजत और 5 कांस्य राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में जीते हैं.
भारत की पहली मूक-बधिर ब्रांड एंबेसडर
गौरांशी केवल खेलों में ही नहीं, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी प्रेरणा का स्रोत हैं. वे भारत की पहली मूक-बधिर ब्रांड एंबेसडर और यूनिसेफ की युवा एडवोकेट हैं. न्यूयॉर्क स्थित यूनिसेफ मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम में भी उन्होंने देश का प्रतिनिधित्व किया था.
परिवार और पृष्ठभूमि
गौरांशी के माता-पिता गौरव और प्रीति शर्मा भी जन्म से मूक-बधिर हैं. उनकी दादी हेमलता शर्मा रामगंजमंडी नगरपालिका की पूर्व चेयरमैन रह चुकी हैं, जबकि दादा प्रमोद शर्मा कोटा स्टोन व्यवसाय से जुड़े हैं.
बचपन और संघर्ष
रामगंजमंडी की रहने वाली गौरांशी शर्मा का जीवन शुरुआत से ही चुनौतियों से भरा रहा. जन्म से मूक-बधिर होने के कारण संवाद करना आसान नहीं था. लेकिन इस कमी को उन्होंने कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया. छोटी उम्र से ही खेलों में रुचि दिखाई और बैडमिंटन को अपने करियर के रूप में चुना. शुरुआती दिनों में ट्रेनिंग के दौरान उन्हें कोच और साथियों से संवाद की कठिनाई का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने मेहनत और लगन से हर चुनौती पर काबू पाया.
परिवार का सहयोग और प्रेरणा
गौरांशी के माता-पिता गौरव और प्रीति शर्मा भी जन्म से मूक-बधिर हैं. इसके बावजूद उन्होंने अपनी बेटी के सपनों को पंख देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. माता-पिता हमेशा उनके साथ खड़े रहे और उन्होंने साबित किया कि सच्चा हौसला बोलने या सुनने से नहीं, बल्कि इच्छाशक्ति से आता है. यही पारिवारिक प्रेरणा गौरांशी को कठिन हालात में भी आगे बढ़ाती रही.
ट्रेनिंग और तैयारी
गौरांशी ने नियमित और अनुशासित ट्रेनिंग को अपनी आदत बना लिया है. रोजाना घंटों तक बैडमिंटन कोर्ट पर पसीना बहाना और फिटनेस पर ध्यान देना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है. खेल विशेषज्ञ बताते हैं कि गौरांशी न केवल शारीरिक फिटनेस पर काम करती हैं, बल्कि मानसिक मजबूती के लिए भी विशेष ट्रेनिंग करती हैं. यही कारण है कि उन्होंने कम समय में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाई.
प्रेरणा का स्रोत
गौरांशी हमेशा से ही इंटरनेशनल बैडमिंटन खिलाड़ियों से प्रेरणा लेती रही हैं. भारत की बेटियां जब विश्व स्तर पर जीत हासिल करती हैं, तो वही उनके लिए सबसे बड़ी प्रेरणा होती है. परिवार और समाज से मिली हिम्मत ने उन्हें और मजबूत बनाया.
उपलब्धियां और भविष्य के लक्ष्य
अब तक गौरांशी 6 अंतरराष्ट्रीय और 13 राष्ट्रीय पदक जीत चुकी हैं. इनमें डेफ ओलिंपिक और विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप के गोल्ड मेडल भी शामिल हैं. उनका अगला लक्ष्य नवंबर 2025 में टोक्यो में होने वाले डेफ ओलिंपिक में भारत को पदक दिलाना है. गौरांशी का सपना है कि आने वाले वर्षों में वह पैरा ओलिंपिक और अन्य इंटरनेशनल टूर्नामेंट्स में भी भारत का नाम रोशन करें.
स्थानीय गौरव और सम्मान
गौरांशी की उपलब्धियों पर रामगंजमंडी और कोटा के लोग गर्व महसूस कर रहे हैं. उनकी दादी हेमलता शर्मा नगरपालिका की पूर्व चेयरमैन रह चुकी हैं और दादा प्रमोद शर्मा कोटा स्टोन व्यवसाय से जुड़े हैं. परिवार और शहर के लोग उन्हें गर्व से अपनी "गौरव बेटी" कहते हैं. राज्य स्तर पर भी कई बार उन्हें सम्मानित किया गया है और अब सभी की नजरें टोक्यो में उनके प्रदर्शन पर टिकी हैं.
ब्रांड एंबेसडर और सामाजिक पहचान
खेलों के साथ-साथ गौरांशी ने सामाजिक स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई है. वह भारत की पहली मूक-बधिर ब्रांड एंबेसडर और यूनिसेफ की युवा एडवोकेट हैं. पिछले साल न्यूयॉर्क स्थित यूनिसेफ मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होकर उन्होंने यह साबित किया कि उनकी पहचान सिर्फ एक खिलाड़ी तक सीमित नहीं, बल्कि एक वैश्विक प्रेरणा है.
-चेतन गुर्जर की रिपोर्ट