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चट्टान है ये! न कंधे की चोट...न समाज की सोच, कोई नहीं हिला पाया निकहत जरीन का हौसला

भारतीय मुक्केबाज निकहत जरीन महिला विश्व बॉक्सिंग के फाइनल में पहुंच गई है. निकहत जरीन ने बुधवार को इस्तांबुल में चल रही आईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप के सेमीफाइनल में ब्राजील की कैरोलिन डी अल्मेडा को हराकर फाइनल में एंट्री कर ली है.

 निकहत जरीन निकहत जरीन
हाइलाइट्स
  • 13 साल की उम्र से शुरू कर दी बॉक्सिंग

  • कंधे की चोट ने नहीं किया मायूस

जिंदगी में रुकावटें चाहें जितनी भी आएं, उन सभी को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने वाले को की सफलता मिलती है. आज हम आपको एक ऐसी लड़की की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसने सफलता के शिखर पर चढ़ने के लिए जिंदगी में आने वाली हर तरह की परेशानी का सामना किया है और आखिरकार वो मुकाम पा लिया जिसकी उसे हमेशा से तलाश थी. हम बात कर रहे हैं, भारतीय मुक्केबाज निकहत ज़रीन की. जिन्होंने हाल ही में आईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप के सेमीफाइनल में ब्राजील की कैरोलिन डी अल्मेडा को हराकर फाइनल में एंट्री कर ली है. गुरुवार को फाइनल मुकाबला होना है. 

13 साल की उम्र से शुरू कर दी बॉक्सिंग
निकहत ज़रीन हैदराबाद से करीब 200 किलोमीटर दूर तेलंगाना के एक शहर निजामाबाद की रहने वाली हैं. ज़रीन के चाचा शमशुद्दीन ने ही उन्हें बॉक्सिंग की दुनिया से रूबरू कराया. शमशुद्दीन एक बॉक्सिंग कोच थे. वह अपने बेटों और निकहत के चचेरे भाई को बॉक्सिंग की ट्रेनिंग देते थे. उन्हें देखते हुए निकहत ज़रीन की भी बॉक्सिंग में रुचि बढ़ने लगी. बॉक्सिंग के लिए उसके जुनून को देखकर उनके चाचा ने उसे भी कोचिंग देना शुरू कर दिया, उस वक्त वो 13 साल की थीं. हालांकि निकहत की मां को उनका बॉक्सिंग करना पसंद नहीं था.

शुरुआती दिनों में निकहत के लिए पढ़ाई और बॉक्सिंग एक साथ करना काफी मुश्किल था, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने सब कुछ संभाल लिया. इन सब में उनके दोस्तों ने भी उनका साथ दिया. उनके दोस्त उनके लिए नोट्स तैयार रखते थे. हालांकि बोर्ड एग्जाम देने के बाद निकहत का पूरा फोकस बॉक्सिंग की तरफ हो गया.

कंधे की चोट ने नहीं किया मायूस
किसी भी एथलीट के लिए सबसे डरावनी चीज है चोट लगना. निकहत को अपने करियर के शुरूआती दौर में ही इसका सामना करना पड़ा. निकहत को अपने करियर में सबसे बड़ा झटका तब लगा जब उनके दाहिने कंधे पर की हड्डी टूट गई, जिसके बाद उन्हें सर्जरी करानी पड़ी.  किसी भी एथलीट के लिए सर्जरी उनके करियर को बना या बिगाड़ सकती है. साथ ही कंधे की चोट एक मुक्केबाज के लिए अधिक जोखिम भरा होता है क्योंकि सारी ताकत वहीं से आती है. सर्जरी के बाद भी दोबारा फॉर्म में आना भी काफी मुश्किल है. महज बीस साल की उम्र में कंधे में चोट लगना निकहत के लिए चुनौतीपूर्ण था, लेकिन उन्होंने हर तकलीफ को पार करते हुए दोबारा खेलना शुरू किया.

निकहत का कम-बैक
सारी तकलीफों को पीछे छोड़ते हुए निकहत ने 2019 में स्ट्रैंड्जा मेमोरियल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में स्वर्ण जीतकर बेहतरीन कम-बैक लिया. उसके बाद निकहत ने साल 2021 में बैंकॉक में आयोजित एशियाई मुक्केबाजी चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता. इस प्रदर्शन ने उन्हें जबरदस्त आत्मविश्वास दिया. निखत ने 2019 जूनियर नेशनल में स्वर्ण पदक जीता. इसके अलावा, उन्हें टूर्नामेंट के 'सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज' के रूप में भी चुना गया.

वहीं निकहत के परिवार की बात करें तो निकहत के पिता जमील अहमद खाड़ी में सेल्सपर्सन हैं. उनकी तीन बहनें हैं. निकहत एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती है, और उनके कई करीबी रिश्तेदार और घरवालों को एक लड़की होने के कारण उनका बॉक्सर बनना खास पसंद नहीं था. लेकिन अपने जज्बे के बल निकहत ने भी साबित कर दिया कि लड़कियां लड़कों से किसी मायने में कम नहीं हैं.