scorecardresearch

Sunita Atwal: 38 साल का करियर... और देश को दिए कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी... महिला बैडमिंटन कोच सुनीता अटवाल ने हासिल की बड़ी उपलब्धियां 

महिला बैडमिंटन कोच सुनीता अटवाल ने अपने 38 साल के करियर में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं. उन्होंने देश को कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए हैं. सुनीता अटवाल की रिटायरमेंट ने हर किसी को भावुक कर दिया है. आइए जानते हैं सुनीता अटवाल को लेकर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों ने क्या कहा?

Badminton Coach Sunita Atwal (Photo: Himanshu Sharma/ITG) Badminton Coach Sunita Atwal (Photo: Himanshu Sharma/ITG)
हाइलाइट्स
  • महिला बैडमिंटन कोच सुनीता अटवाल की विदाई पर भावुक हुए खिलाड़ी

  • बेहतरीन कोच ही नहीं, एक बेहद अच्छी इंसान भी हैं सुनीता अटवाल 

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में महिला बैडमिंटन हाई परफॉर्मेंस कोच सुनीता अटवाल की रिटायरमेंट ने हर किसी को भावुक कर दिया. मानों बैडमिंटन की दुनिया में सन्नाटा छा गया. देश को कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी देने वाली कोच की रिटायरमेंट पर हर किसी की आंखें नम हो गईं.

इस मौके पर कई नामी खिलाड़ी और अलग-अलग खेलों के कोच मौजूद रहे. स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया की कोच सुनीता अटवाल ने अपने 38 साल के करियर में ऐसे खिलाड़ियों को प्लेटफार्म दिया जो आर्थिक रूप से कमजोर थे. उन्होंने अपनी कोचिंग में उन युवाओं को आगे बढ़ाया जो संसाधनों के अभाव में पीछे रह जाते.

हमेशा एक सकारात्मक ऊर्जा होती है महसूस 
भारत की पूर्व अंतरराष्ट्रीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी मधुमिता बिष्ट ने कहा कि मैंने सुनीता अटवाल के साथ कई चैंपियनशिप में हिस्सा लिया. 1982 एशियन गेम्स के बाद जब मैंने इंदिरा गांधी स्टेडियम (IG Stadium) में खेलना शुरू किया, तभी से हमारी दोस्ती और भी गहरी होती गई. सुनीता एक बहुत ही हंसमुख, मिलनसार और मददगार स्वभाव की इंसान हैं.

सम्बंधित ख़बरें

उनसे बात करके हमेशा एक सकारात्मक ऊर्जा महसूस होती है. सुनीता की सबसे खास बात यह है कि उनमें प्रतिभा को पहचानने की अद्भुत क्षमता है. उनके चुने हुए कई खिलाड़ी आज देशभर की कई एकेडमी में कोचिंग ले रहे हैं. उन्होंने अपने सभी ट्रेनीज को हमेशा सपोर्ट किया और उनकी मदद की है. जो भी बच्चा उनके पास खेलने आया, उन्होंने उसे प्रोत्साहित किया और आगे बढ़ने का हौसला दिया.

आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की मदद के लिए हमेशा तैयार
महिला बैडमिंटन कोच सुनीता की सबसे खास बात यह रही है कि उन्होंने खिलाड़ियों को जमीनी स्तर (ग्रासरूट लेवल) से ट्रेन किया, जो किसी भी कोच के लिए सबसे मुश्किल और चुनौतीपूर्ण काम होता है. बैडमिंटन एक महंगा खेल है, जिसे हर कोई नहीं खेल सकता. लेकिन सुनीता ने आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की कई स्तरों पर मदद की और उन्हें एक अच्छे खिलाड़ी बनाकर आत्मनिर्भर बनाया. वो एक बेहतरीन कोच ही नहीं, बल्कि एक बेहद अच्छी इंसान भी हैं. उनकी सबसे खास बात है कि वो बहुत अनुशासित हैं.

खेल व्यक्तित्व को निखारने में निभाता है महत्वपूर्ण भूमिका 
देश की पूर्व नंबर वन अंतरराष्ट्रीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी नीरू चौहान ने कहा कि यह जरूरी नहीं कि जो खेलेगा, वही खिलाड़ी बनेगा. खेल किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. सुनीता मैम ने अपने कोचिंग करियर में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं. मुझे लगता है कि ऐसे शानदार और समर्पित कोच को सहेजकर रखने की जरूरत है.

किसी को भी कोर्ट में आने से नहीं रोका
मौजूदा समय के अंडर-55 प्लस नेशनल और वर्ल्ड चैंपियन राजीव शर्मा ने कहा कि मेरी कई खट्टी-मीठी यादें ताजा हो रही हैं. मुझे सुनीता मैम का वही चेहरा याद आ रहा है. वो सीधी-सपाट बात करती थीं, कहती थीं, आ जाओ और खेलो. उन्होंने कभी किसी को भी कोर्ट में आने से नहीं रोका. उनके अंदर एक खास सकारात्मकता थी, जो सबको प्रेरित करती थी.

ग्रासरूट लेवल से खिलाड़ी तैयार किए
सुनीता मैम के विदायी के बाद अब एक खालीपन महसूस हो रहा है, क्योंकि अब वो यहां नहीं होंगी. जब भी मैं यहां खेलने आऊंगा, मेरी नजरें मैम को ही ढूंढेंगी. उनकी मुस्कान में एक गहरा अपनापन था. अगर कभी किसी और कोच ने किसी बच्चे को एडमिशन देने से मना कर दिया, तो सुनीता मैम उन्हें अपने पास रखती थीं और ट्रेनिंग देती थीं. कई ऐसे बच्चे उनके पास आए जो आज बड़े खिलाड़ी बन चुके हैं. उनके अंदर खिलाड़ी को पहचानने की जबरदस्त समझ थी. उन्होंने हमेशा यही कहा आओ, खेलो... मोस्ट वेलकम. अब शायद ये शब्द सुनाई नहीं देंगे.

हमारा साथ आज भी है बरकरार 
हाई परफॉर्मेंस कोच राणा ने कहा कि इस मौके पर आकर मुझे बहुत अच्छा लगा. 1986 से चला आ रहा हमारा साथ आज भी बरकरार है. मैंने और सुनीता ने यहां पर लगभग 20 साल एक साथ बिताए हैं, और उस जुनून को मैं कभी नहीं भूल सकती. भागते-दौड़ते समय पर क्लास में पहुंचना. चाहे बच्चे 50 हों या 100, हम दोनों को यह अच्छे से याद रहता था कि किस बच्चे का एडमिशन किस यूनिवर्सिटी में है और किसका किस स्कूल में. अगर किसी बच्चे ने मेडल जीता, तो हम सोचते थे कि वह और बेहतर कॉलेज या स्कूल में कैसे जा सकता है. उस बच्चे के लिए हम क्या कर सकते हैं, ये हमेशा हमारे मन में रहता था.

 कोर्ट पर सबसे पहले हमें अनुशासन सिखाया
दिल्ली के पूर्व नंबर एक बैडमिंटन खिलाड़ी रुद्र कौशिक जो मौजूदा समय में स्पोर्ट्स कोटे से आरबीआई में अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं, उन्होंने बताया कि सुनीता अटवाल मैम ने हमारी बहुत मदद की. मैं आज जिस भी मुकाम पर हूं, उसमें सुनीता मैम का बड़ा योगदान है. मैं पलवल से दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में खेलने आता था. उन दिनों एडमिशन आसानी से नहीं मिलता था, लेकिन मैम ने मुझे सपोर्ट किया और एडमिशन दिलवाया.

इसके अलावा खेलने के लिए जिस भी चीज की जरूरत पड़ी, उन्होंने वो उपलब्ध कराई, चाहे वह आधिकारिक हो या व्यक्तिगत स्तर पर. इसी सपोर्ट के कारण हम बहुत जल्दी दिल्ली और यूनिवर्सिटी की टीम में शामिल हो पाए. उन्होंने दिल्ली से कई बेहतरीन खिलाड़ियों को निकाला है. कोर्ट पर सबसे पहले उन्होंने हमें अनुशासन सिखाया. साथ ही उन्होंने अपने ट्रेनीज को बहुत अच्छे ढंग से तैयार किया, और आज उनके सभी ट्रेनीज अपने-अपने क्षेत्र में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं.

(हिमांशु शर्मा की रिपोर्ट)