
अब किडनैपिंग, वसूली और धमकी देने जैसे मामलों में आरोपियों का बचना अब आसान नहीं होगा. वो अपनी आवाज बदलकर भी ऐसा गुनाह करते हैं तो भी वो पुलिस के शिकंजे से बच नहीं पीएंगे. सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लैबोरेट्री की ऑडियो एंड वीडियो लैब में आसानी से आरोपी की पहचान हो जाएगी. चीफ फॉरेंसिक ऑफिसर ऑफ इंडिया डॉ. एसके जैन, डॉ. शिवानी और पंजाब यूनिवर्सिटी पटियाला के डॉ. आरएन शर्मा ने एक ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार किया है, जिसकी मदद से आरोपियों की आवाज की पहचान की जा सकती है. 99 फीसदी एक्युरेट इस तकनीक को हाल ही में पेटेंट मिला है.
आवाज बदलेंगे, तब भी पकड़े जाएंगे आरोपी-
इस ऑटोमैटिक सिस्टम को डॉ. जैन ने प्लान प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया था. दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक साइंटिस्ट ने बताया कि ब्लैकमेलिंग या धमकी के समय अपराधी आमतौर पर आवाज बदलकर बात करते हैं. आमतौर पर आरोपी पकड़े जाते हैं तो उससे उन शब्दों को बोलने के लिए कहा जाता है.
पहले की तकनीक में धमकी देने के सभी संदिग्धों का सैंपल लेकर स्पेक्टोग्राफिक एनालिसिस होता रहा है. लेकिन कई बार समस्या आती थी कि आरोपी 'सैंपल विद सेम टेक्स्ट' नहीं देते थे. आवाज बदलकर बोलते थे. लेकिन नई तकनीक में आरोपी को पकड़ना आसान होगा. इस ऑटोमैटिक सिस्टम के जरिए आरोपी को पकड़ा जा सकता है. अगर आरोपी आवाज बदलकर भी बात करता है तो ये सिस्टम उसे पकड़ लेगा. इसे शुरुआत में हिंदी और अंग्रेजी के साथ 10 भाषाओं में बनाया जा रहा है.
किस डिवाइस से हुई रिकॉर्डिंग, ये भी लगेगा पता-
सीएफएसएल ने आईआईटी रुड़की के साथ मिलकर डिजिटल वॉयस प्रूफ को पकड़ने के लिए एक दूसरा सिस्टम तैयार किया है. इस सिस्टम के तहत ये पता लगाया जा सकता है कि रिकॉर्डिंग किस मोबाइल से किया गया है. इतना ही नहीं, इससे ये भी पता लगाया जा सकता है कि रिकॉर्डिंग से कोई छेड़छाड़ तो नहीं की गई है. रिकॉर्डिंग वॉरिजिनल है या नहीं.
कई बार ऐसा होता है कि रिकॉर्डिंग के बाद उसमें कुछ नया जोड़ दिया जाता है. ये सिस्टम ये पकड़ लेगा. यह सिस्टम 97 फीसदी सटीक है. अगर एक रिकॉर्डिंग को कई लोग कर रहे हैं तो इस सिस्टम के जरिए ये पता लगाया जा सकता है कि किस डिवाइस से रिकॉर्डिंग हुई है.
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