
सोशल मीडिया हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है, लेकिन इसके कई छिपे हुए असर हैं जिन पर अक्सर ध्यान नहीं जाता. ऐसा ही एक खतरनाक ट्रेंड है डिजिटल हॉन्टिंग (Digital Haunting) यानी हमारा डिजिटल अतीत बार-बार सामने आना, चाहे हम चाहें या नहीं. पुरानी तस्वीरें, पोस्ट, चैट्स, यादें या गलतियां, जो हमारे लिए बहुत पहले खत्म हो चुकी होती हैं, सोशल मीडिया के जरिए बार-बार सामने आकर मानसिक शांति को भंग कर रही हैं और कई बार रिश्तों में दरार तक डाल देती हैं.
क्या है डिजिटल हॉन्टिंग?
डिजिटल हॉन्टिंग को सरल शब्दों में समझें तो यह हमारी ऑनलाइन मौजूदगी का ‘भूत’ है- हमारा डिजिटल अतीत, जो कभी मिटता नहीं. सोशल मीडिया के एल्गोरिद्म पुराने पोस्ट, तस्वीरें या चैट्स फिर से दिखाते रहते हैं.
उदाहरण के तौर पर, जब किसी पुराने रिलेशनशिप या दोस्ती की तस्वीरें अचानक टाइमलाइन पर दिखती हैं, तो दिमाग पुरानी यादों में चला जाता है. कभी-कभी यह नॉस्टैल्जिया जगाता है, तो कभी अधूरे इमोशनल घाव हरे कर देता है. यही नहीं, नए रिश्तों में भी अविश्वास और असुरक्षा की भावना बढ़ जाती है.
पुरानी यादों से मिलता दर्द
डिजिटल जिंदगी या असल जिंदगी
समय के साथ इंसान बदलता है, लेकिन इंटरनेट नहीं. हमारी पुरानी पोस्ट, फोटो और ट्वीट्स बार-बार सामने आते हैं, चाहे हम आज बदल चुके हों. कई बार हमारी पुरानी पहचान हमारे वर्तमान से मेल नहीं खाती. पुराने विचार और तस्वीरें देखकर लोग गलत धारणा बना लेते हैं. इससे इंटरनल कॉन्फलिक्ट होता है, क्योंकि हम अतीत के भूत से बाहर नहीं निकल पाते.
खुद से तुलना और असुरक्षा
कैसे बचें डिजिटल हॉन्टिंग से?
विशेषज्ञों के अनुसार, इससे निकलने का एक ही तरीका है:
डिजिटल बाउंड्रीज़ बनाना:
डिजिटल हॉन्टिंग धीरे-धीरे हमारी मानसिक शांति, रिश्तों और खुद की पहचान को प्रभावित कर रही है. अतीत की यादें कभी पूरी तरह नहीं मिटतीं, लेकिन हमें यह सीखना होगा कि डिजिटल भूतों से कैसे निपटना है. क्योंकि जीवन आगे बढ़ने का नाम है- लेकिन सोशल मीडिया हमें बार-बार पीछे खींचता है.
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