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हाईस्कूल में पढ़ने वाले इस लड़के ने बनाया ऐसा ऐप जो फोटो देखकर बता देता है हवा की क्वालिटी

AVA बनाने से पहले विश्वा ने ये सोच लिया था कि ये ऐप बेहद ही आसानी से चलना चाहिए. ये ठीक वैसा ही हो कि बस एक क्लिक से एक्यूआई का पता लगाया जाए. और इसे पूरा करने के लिए विश्वा ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया और फोटो से हवा की क्वालिटी पता करने का नायाब रास्ता ढूंढ निकाला.

विश्वा अय्यर विश्वा अय्यर
हाइलाइट्स
  • हाईस्कूल में पढ़ने वाले विश्वा का कमाल

  • फोटो के जरिए हवा की क्वालिटी पता करने वाला ऐप बनाया

बचपन से कुदरत के प्रति लगाव रखने वाले विश्वा अय्यर ने एक अनोखी खोज की है. विश्वा की ये खोज पूरी तरह से नई तो है ही, साथ ही भारत में वायु प्रदुषण से मरने वाले लोगों के बारे में सचेत भी करती है. 

फोटो से ही पता चल जाएगा पॉल्यूशन कितना है

अपनी तरकीब से एयर वेरिएंस अथॉरिटी (एवीए) बनाने वाले विश्वा कैलिफ़ोर्निया के फ्रेमोंट में अमेरिकन हाई स्कूल के स्टूडेंट हैं, एयर वेरिएंस अथॉरिटी एक ऐसा ऐप है जो परछाई के जरिए हवा की गुणवत्ता निर्धारित करने में मदद करता है. एयर वेरिएंस अथॉरिटी इसी साल की शुरुआत में लॉन्च किया गया है, अब यह ऐप ब्राउज़र के अलावा  Google PlayStore पर भी उपलब्ध है. 

विदेश में रहने वाले विश्वा ने भारत की AQI की तर्ज पर बना डाला ये ऐप

विश्वा ने सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर कर ऐप के बारे में लिखा कि , भारत में एयर क्वालिटी इंडेक्स सेंसर बहुत महंगे हैं, हालाँकि, भारत में 800 मिलियन से ज्यादा स्मार्टफोन हैं, और यह नंबर लगातार बढ़ भी रहे है.विश्वा की ये खोज इसी डेटा को मद्देनज़र रख कर बनाई गई है, जो पर्यावरण सुधार की दिशा में उठाया गया एक बेहतरीन कदम साबित हो रहा है. इस तकनिक की खोज करने से पहले विश्वा ने वायु गुणवत्ता और भारतीयों के लिए मौजूद संसाधनों पर शोध किया. फिर कहीं जा कर वो इस नतीजे पर पहुंचे कि लोगों की मदद करने के लिए एक ऐसी तरकीब तलाशनी होगी जो महज तस्वीर के जरिए हवा की क्वालिटी की पहचान कर सके.  

AVA के बेहतर इस्तेमाल के लिए डेटासेट बनाया

AVA बनाने से पहले विश्वा ने ये सोच लिया था कि ये ऐप बेहद ही आसानी से चलना चाहिए. ये ठीक वैसा ही हो कि बस एक क्लिक से एक्यूआई का पता लगाया जाए. विश्वा ये बताते हैं कि उन्हें ये एहसास हुआ कि वो इससे निपटने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर सकते हैं. फिर विश्वा ने डेटासेट बनाना शुरू किया. 

प्रदुषण से निपटने के लिए सोशल मीडिया पर पोस्ट की हुई तस्वीरों का इस्तेमाल

भारत और पूरी दुनिया में बहुत से लोग #smogselfies के साथ आसमान में दिख रहे प्रदुषण की तस्वीरें इंस्टाग्राम और ट्विटर पर पोस्ट और शेयर करते रहते हैं. विश्वा ने इन्हीं तस्वीरों का इस्तेमाल किया और जिस दिन वो फोटो क्लिक की गई थी, उसी दिन के एक्यूआई के साथ प्रदुषण मार्क करना शुरू किया. उन्होंने Google पर मौजूद दूसरी तस्वीरें भी पाईं और कुछ तस्वीरों का इस्तेमाल किया. विश्वा बतातें हैं कि "मैंने 200 से ज्यादा तस्वीरों को मैन्युअली लेबल किया था और मेरे पास तस्वीरों का एक डेटाबेस था जो एक्यूआई से मेल खाता था. 

शहरी और गांव के इलाकों के लिए दो अलग मॉडल

AVA दो मॉडल की तर्ज पर बना हैं, एक शहरी इलाकों के लिए है, इसमें 16-लेयर कन्वेन्शनल न्यूरल नेटवर्क मॉडल लगा हुआ है ,और इसे  Google क्लाउड पर तैनात किया गया है, इससे जब भी कोई  फ़ोटो अपलोड किया जाता है, तो ये मॉडल ये अंदाजा लगा सकता है कि फ़ोटो किस AQI बकेट में गिरेगी. यानी इसमें प्रदुषण का लेवल कितना होगा. 

दूसरा  मॉडल ग्रामीण भारतीयों के लिए बनाया गया है और इसके लिए किसी इंटरनेट की  जरूरत नहीं है. यह एक साधारण k-Nearest-Neighbour algorithm है . जिससे फोटो में आसमान का लाल, हरा, नीला (RGB) मार्क हो जाता है.