
राजस्थान को खनिज संपन्न राज्य माना जाता है. यहां जमीन के नीचे चूना, तांबा, बेस मेटल्स और लोहे जैसे कई जरूरी और कीमती खनिज छिपे हुए हैं. इनकी खोज और दोहन से राज्य की अर्थव्यवस्था को बड़ा फायदा हो सकता है.
अब तक इस खोज का काम पारंपरिक तरीकों से होता था- मतलब इंसान, मशीनें और काफी समय इसमें जाया होता था. लेकिन अब AI की एंट्री के बाद ये काम तेज़ भी होगा, सटीक भी और किफायती भी.
इतना ही नहीं, भारत सरकार और राज्य सरकार की पुरानी रिपोर्ट्स, सर्वे डाटा और जियोलॉजिकल रिकॉर्ड्स को AI सिस्टम में डाला जाएगा. AI सारे डाटा को एक साथ प्रोसेस करेगा, और बताएगा कि किस जगह पर खनिज होने की सबसे ज्यादा संभावना है.
इस पूरे प्रोजेक्ट का नेतृत्व कर रही है हैदराबाद की एक कंपनी- NPEA Critical Mineral Tracker. राज्य सरकार ने कंपनी को 45 दिन का समय दिया है ताकि वो अपनी फाइनल रिपोर्ट दे सके कि कहां कहां खुदाई करनी चाहिए.
जवाब है- हां
कनाडा में AI की मदद से नई माइनिंग साइट्स ढूंढी गईं हैं. ऑस्ट्रेलिया में मशीन लर्निंग और सैटेलाइट डेटा का इस्तेमाल करके लिथियम और कॉपर जैसे महंगे मिनरल्स की खोज हो रही है. अमेरिका में भी NASA जैसी एजेंसियां AI की मदद से पृथ्वी के अंदर छिपे मिनरल्स का मैप बना रही हैं. इन सभी देशों को इससे बड़ा फायदा हुआ है- काम तेज हुआ है, खर्चा घटा है, और खोज की सटीकता कई गुना बढ़ी है.
राजस्थान में ये टेक्नोलॉजी पहली बार इस्तेमाल की जा रही है. राज्य के माइन्स और जियोलॉजी विभाग के प्रमुख सचिव टी. रविकांत का कहना है कि इससे समय और श्रम दोनों की बचत होगी, और जो रिजल्ट आएंगे वो वैज्ञानिक रूप से ज्यादा भरोसेमंद होंगे.
राजस्थान में कई मिनरल्स ऐसे हैं जिनकी जरूरत पूरी दुनिया को है- जैसे तांबा, लोहा और बेस मेटल्स. आने वाले समय में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स और बैटरियों के लिए इन खनिजों की मांग और बढ़ने वाली है.
ऐसे में, अगर भारत अपने ही देश में इनकी खोज और खनन कर पाए, तो आत्मनिर्भर बनने की दिशा में यह एक बड़ा कदम होगा.
तो कुल मिलाकर बात ये है कि राजस्थान सरकार का ये फैसला सिर्फ एक टेक्नोलॉजी अपग्रेड नहीं, बल्कि डिजिटल इंडिया की दिशा में उठाया गया क्रांतिकारी कदम है. अगर ये प्रोजेक्ट सफल होता है, तो आगे आने वाले समय में देश के दूसरे राज्यों में भी इसी मॉडल को अपनाया जा सकता है.