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Godhaar ID for Animals: तेलंगाना के युवाओं ने गाय-भैसों के लिए बनाया आधार कार्ड, अब एक क्लिक पर मिलेगा जन्म से लेकर मृत्यु तक बीमारी का रिकॉर्ड... जानिए कैसे काम करेगी तकनीक

Godhaar ID: गोधार ऐप की तकनीक बेहद सरल है. यह जानवरों की एक पहचान बनाता है. एकदम आधार की तरह. इसकी मदद से वह जानवरों की सारी मेडिकल हिस्ट्री को एक जगह इकट्ठा कर देता है.

Representational Image: Freepik Representational Image: Freepik

आंध्र प्रदेश में तिरुपति जिले के शांत कोने में युवा उद्यमियों का एक समूह गोधार नाम के ऐप के साथ तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. गोधार की प्रेरणा आधार से मिली है. इसमें हर गाय और भैंस को अनूठी डिजिटल पहचान दी जाती है. उनके मांसपेशियों के पैटर्न को स्कैन करने के लिए एआई का उपयोग किया जाता है. बिल्कुल इंसानों के फिंगरप्रिंट की तरह. 

क्यों दी जानवरों को डिजिटल पहचान?
इस सोच के जनक कोटेश्वर राव बताते हैं कि उनकी टीम आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और प्रमुख मंत्रालयों के सामने इस परियोजना को पेश कर चुकी है. उनकी प्रतिक्रिया काफी सकारात्मक रही है. गोधार ऐप के संस्थापक और सीईओ कोटेश्वर राव कहते हैं, "कई समस्याएं दूर करने के लिए हम इमेज प्रोसेसिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ डिजिटल पहचान ला रहे हैं, ताकि आधार बनाया जा सके." 

उन्होंने कहा, "यहां तक ​​कि अमेरिका और जापान में भी वे तस्वीरों की प्रतियां ले रहे हैं और जानवरों के विवरण का दस्तावेजीकरण कर रहे हैं. अब हमने अपनी परियोजना के लिए पेटेंट के लिए भी आवेदन किया है. इसकी प्रक्रिया चल रही है. हाल में हमने इस परियोजना को सीएम चंद्रबाबू नायडू, विभिन्न सचिवों और मंत्रियों के सामने पेश किया है. वे काफी प्रभावित हुए हैं. हम इसे जल्द बड़े स्तर पर शुरू करेंगे." 

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फिंगरप्रिंट नहीं, तो कैसे होगी पहचान?
गोधार ऐप की टीम ने इस तकनीक को पेटेंट कराने के लिए आवेदन किया है और जिले में एक पायलट प्रोजेक्ट भी शुरू किया है. उनका दावा है कि ऐप किसी जानवर के जन्म से लेकर मृत्यु तक पूरे मेडिकल इतिहास को ट्रैक करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल करता है. जानवरों के पैरों में इंसानों जैसे फिंगरप्रिंट नहीं होते इसलिए यह ऐप उनकी मांसपेशियों के सहारे उनकी पहचान करता है. 

ऐप के सह-संस्थापक और सीओओ निश्चल रैपिरेड्डी इस तकनीक के बारे में कहते हैं, "मूल रूप से गोधार मवेशियों की विशिष्ट पहचान है. जैसे इंसानों के हाथों पर फिंगरप्रिंट होते हैं, वैसे ही मवेशियों के मांसपेशियों का पैटर्न होता है. हमने एक एल्गोरिदम विकसित किया है, जहां आप सिर्फ उनकी तस्वीरों का इस्तेमाल करके उनकी विशिष्ट पहचान कर सकते हैं." 

वह तकनीक के बारे में बताते हैं, "हमने इसके बैक-एंड में एआई और मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का इस्तेमाल किया है. हमने इसे बिल्कुल शुरू से विकसित किया है. हमें मूल रूप से सिर्फ एक तस्वीर का इस्तेमाल करके मांसपेशियों के पैटर्न को विशिष्ट पहचान बनाना है." 

कैसे काम करता है ऐप?
ऐप के को-फाउंडर राहुल वर्मा ने ऐप के इस्तेमाल पर पूरी जानकारी दी. उन्होंने बताया, "आपको अपने स्मार्टफोन में हमारा एप्लीकेशन डालने के बाद बस उसके कैमरे में मजल (जानवर के नाक और मुंह वाला हिस्सा) की तस्वीर लेनी है. जैसा हमारा फिंगर प्रिंट है, तो मजल प्रिंट भी यूनिक है. उस यूनिक प्रिंट को लेकर एक यूनिक आईडी मिलती है. उसे हम गोधार आईडी बोल रहे हैं. पिक्चर डालने के बाद एक बार गोधार आईडी जेनरेट हो जाए तो उसके जन्म से मरने तक सारा डेटा गोधार पर रिकॉर्ड हो जाता है." 

गोधार का मकसद किसानों को सशक्त बनाना, मवेशियों की ट्रैकिंग आसान करना और सरकारी योजनाओं के दुरुपयोग को रोकना है. ग्रामीण भारत खेती में तेजी से डिजिटल उपकरणों को अपना रहा है. ऐसे में गोधार जैसे नवाचार ना सिर्फ उनकी मदद करते हैं, बल्कि युवा प्रतिभा को भी सामने लाते हैं. इस पहल में सरकार की दिलचस्पी है और इसके विस्तार की गुंजाइश है. ये पहल पशुधन प्रबंधन को बदलने का माद्दा रखती है.