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चीन में आज से शुरू हो रहा ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का आयोजन, जानिए BRICS क्या है और क्यों पड़ी इसको बनाने की जरूरत

विदेश मंत्रालय के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के निमंत्रण पर ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के अलावा 24 जून को मेहमान देशों के साथ वैश्विक विकास पर उच्चस्तरीय संवाद में भी हिस्सा लेंगे.

BRICS BRICS
हाइलाइट्स
  • 2006 में हो गई ब्रिक्स बनने की शुरुआत

  • 2009 में हुई थी पहली मीटिंग

चीन में 23 जून यानी आज से 14वें ब्रिक्स सम्मेलन का आयोजन हो रहा है. दो दिन चलने वाली इस बैठक में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के नेता राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और मानवीय सहयोग की स्थिति और उनकी संभावनाओं पर चर्चा करेंगे. इसके अलावा वर्तमान अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों की समीक्षा करने की भी योजना बन रही है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता करेंगे. तो चलिए आपको बताते हैं कि आखिर ये ब्रिक्स है क्या और इसको बनाने की जरूरत क्यों पड़ी.

क्या है BRICS?
BRICS में पांच देश शामिल है- ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका. इन्हीं देशों के पहले अक्षर के नाम से ब्रिक्स बना है. ब्रिक्स सम्मेलन हर साल होता है, जिसमें इसके मेंबर देशों के सभी राष्ट्राध्यक्ष भाग लेते हैं. भारत दो बार 2012 और 2016 में इसको होस्ट कर चुका है. इस ग्रुप को काफी मजबूत माना जाता है, इसमें दुनिया के तीन बड़े देश, भारत, चीन और रूस शामिल हैं. लेकिन कोई भी पश्चिमी देश इस ग्रुप का पार्ट नहीं है. दक्षिण अफ्रीका के इस ग्रुप का हिस्सा बनने से पहले इसका नाम BRICK था. 

BRIC के बनने की शुरुआत साल 2006 में ही शुरू हो गई थी, जब इन देशों के विदेश मंत्रियों ने न्यूयॉर्क में एक हाई लेवल मीटिंग करके इसका ब्लूप्रिंट तैयार किया था. लेकिन ब्रिक देशों की पहली मीटिंग साल 2009 में हुई. फिर 2011 में दक्षिण अफ्रीका के इस ग्रुप के जुड़ने के साथ ही इसका नाम ब्रिक्स हो गया.

क्या है BRICS की अहमियत?
BRICS की अहमियत समझने से पहले इससे जुड़े देशों की अहमियत समझना बेहद जरूरी है. चीन, रूस और भारत दुनिया की तीन बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं, तो वहीं ब्राजील लैटिन अमेरिका का एक मुख्य देश है, और दक्षिण अफ्रीका अफ्रीका महाद्वीप का एक मुख्य देश है. दूसरे शब्दों में कहें तो ब्रिक्स देशों की सेवाएं दुनिया के एक छोर से दूसरे छोर तक फैली हुई है. इन देशों की कुल अर्थव्यवस्था लगभग 16 खरब डॉलर की है. दुनिया की टोटल जीडीपी का 30% हिस्सा इन्हीं देशों का है. दुनियाभर में जितना व्यापार होता है, उसका 18% व्यापार भी यही देश करते हैं. दुनिया की 50% आबादी भी इन्हीं देशों में बस्ती है. इसीलिए रीजनल और ग्लोबल मामलों में इन देशों का अपना प्रभाव है. इन देशों का कुल विदेशी मुद्रा निवेश भी लगभग 4 खरब डॉलर का है.

क्या है ब्रिक्स का मुख्य काम?
ब्रिक्स के मेंबर देशों का मुख्य काम ग्लोबल इकॉनमी और फाइनेंशियल स्थिति में सुधार लाना है, ताकि इसके मेंबर देशों की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया जा सके. इसके लिए इन्होंने एक बैंक भी बनाया है, जिसका नाम नेशनल डेवलपमेंट बैंक है. इसकी घोषणा भारत के ही सुझाव पर 2014 में की गई थी. इस बैंक का काम किसी भी प्राइवेट प्रोजेक्ट में लोन या उसमें हिस्सेदारी देकर उस प्रोजेक्ट को पूरा करना है. ये बैंक इंटरनेशनल प्रोजेक्ट्स की मदद से इन टेक्निकल सपोर्ट भी मुहैया कराता है. इसका हेड क्वार्टर चीन के शंघाई में है. इसके प्रेसिडेंट भारत के केवी कामथ हैं. लेकिन ब्रिक्स के मेंबर देशों के आपसी मतभेद और उनकी परेशानियों की वजह से ब्रिक्स के मुख्य मुद्दों पर पूरी तरह से काम नहीं हो पा रहा है.

क्यों है इन देशों में मतभेद
विवाद एक नहीं कई हैं, जैसे भारत और चीन में सीमा को लेकर विवाद, वन बेल्ट वन रोड को लेकर विवाद और चीन और पाकिस्तान की नजदीकियां बढ़ने से भारत का ऐतराज. वहीं चीन और ब्राजील में चीन की मुद्रा को लेकर विवाद है. नए देशों को ब्रिक्स में शामिल करने को लेकर विवाद. ब्रिक्स के मेंबर देशों में राजनीतिक सिस्टम के कारण भी कुछ दूरियां हैं, जैसे भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में मजबूत लोकतांत्रिक व्यवस्था है, तो वहीं चीन में कम्युनिस्ट सरकार है, जो काफी असहशील है. कहीं न कहीं इन देशों में मतभेद का कारण अमेरिका भी है, क्योंकि कुछ अमेरिका के साथ है तो कुछ अमेरिका के खिलाफ. चीन और रूस की राय अक्सर अमेरिका के खिलाफ ही होती है,  जिससे विवाद पैदा होता है.