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23th May in History: आज के दिन ही 1951 में Tibet पर China ने किया था कब्जा, मजबूरन Dalai Lama को करना पड़ा था समझौता

On This Day in 1951: 23 मई 1951 को चीन ने तिब्बत पर जबरन कब्जा कर लिया था. इस दिन दलाई लामा ने 17 सूत्रीय समझौते पर हस्ताक्षर कर दिया था. हालांकि बाद में दलाई लामा ने इस समझौते को मानने से इनकार किया और चीन पर जबरन समझौते पर हस्ताक्षर कराने का आरोप लगाया था.

23 मई 1951 को चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया था (Photo/Wikipedia) 23 मई 1951 को चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया था (Photo/Wikipedia)

23 मई 1951 से पहले तिब्बत एक स्वतंत्र राष्ट्र था. लेकिन ये दिन तिब्बत के इतिहास में काला दिन लेकर आया. तिब्बती आज भी इसे काला दिवस के तौर पर मनाते हैं. इस दिन चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया था. इस दिन ही चीन के दबाव में आकर दलाई लामा ने 17 सूत्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. चलिए आपको बताते हैं कि कैसे चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया था.

1949 में तिब्बत पर चीन का हमला-
तिब्बत का इतिहास उथल-पुथल भरा रहा है. इस इलाके पर कभी मंगोलियो का शासन रहा तो कभी चीनी राजवंशों की सत्ता स्थापित थी. साल 1912 से तिब्बत एक स्वतंत्र राष्ट्र था. लेकिन हमेशा से तिब्बत चीन की आंखों में खटकता रहा. चीन ने मौका देखकर तिब्बत पर कब्जा करने की नियत से हमला किया. साल 1949 में चीनी सैनिक तिब्बत पर चढ़ाई कर दी. सैनिकों ने पूर्वी तिब्बत के राज्यपाल के मुख्यालय पर अधिकार कर लिया. तिब्बत को बाहरी दुनिया से पूरी तरह से काट दिया गया. 11 नवंबर 1950 को तिब्बतियों ने संयुक्त राष्ट्र में अर्जी लगाई. लेकिन इस मुद्दे को टाल दिया गया. तिब्बतियों ने इसका विरोध किया. 
इसके बाद 9 सितंबर 1951 को चीनी सैनिकों ने ल्हासा में मार्च किया. आखिरकार धर्मगुरु दलाई लामा ने 17 बिंदुओं वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिया. इसके साथ ही तिब्बत आधिकारिक तौर पर चीन का हिस्सा बन गया.

तिब्बतियों पर अत्याचार-
भले ही चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था. लेकिन तिब्बतियों में चीन के खिलाफ गुस्सा बढ़ने लगा था. साल 1955 में पूरे तिब्बत में चीन के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन हुए. इस प्रदर्शन में हजारों लोगों की जान गई. इस दौरान चीन ने तिब्बत की भाषा, संस्कृति, धर्म और परंपरा को निशाना बनाया. विदेशी लोगों के तिब्बत आने पर पांबदी थी.

दलाई लामा ने भारत में ली शरण-
मार्च 1959 में खबर फैली कि चीन दलाई लामा को बंधक बनाने वाला है. हजारों की संख्या में लोग दलाई लामा के महल के बाहर जमा हो गए. दलाई लामा ने एक सैनिक का वेश बनाया और तिब्बत छोड़ दिया. दलाई लामा भारत आ गए. चीन ने कई बार भारत से दलाई लामा को वापस करने को कहा. लेकिन भारत ने इनकार कर दिया.

शरणार्थी तिब्बती चुनते हैं अपनी सरकार- 
हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से तिब्बत की निर्वासित सरकार चलती है. तिब्बत की निर्वासित सरकार के लिए चुनाव होता है. इस चुनाव में दुनियाभर  के तिब्बती शरणार्थी वोटिंग करते हैं. वोट डालने के लिए रजिस्ट्रेशन कराना होता है. चुनाव के जरिए लोग राष्ट्रपति चुनते हैं, जिनको सिकयोंग कहा जाता है. संसद का कार्यकाल 5 साल का होता है. तिब्बती संसद का मुख्यालय हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में है.

भारत ने तिब्बत को माना चीन का हिस्सा-
साल 2003 में भारत ने आधिकारिक तौर पर तिब्बत को चीन का हिस्सा मान लिया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और चीनी राष्ट्रपति जियांग जेमिन की मुलाकात हुई थी. उसके बाद भारत ने तिब्बत को चीन का अंग माना था. इस मुलाकात के बाद चीन ने भी भारत के साथ सिक्किम के रास्ते व्यापार की शर्त मान ली थी. इसका मतलब ये माना गया कि चीन ने सिक्किम को भारत का हिस्सा मान लिया है.

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